Sudama chratira ki prasang vyakhya
कवि नरोत्तमदास रचित 'सुदामा चरित' मन कृष्ण-सुदामा की मैत्री का वर्णन है। अपने बल-साख सुदामा को निर्धन अवश्था मैं देखकर करूणानिधि कृष्ण भाव-विह्वल हो जाते हैं। वे राजा-रंक का भेद भुलाकर सुदामा से उनकी पत्नी द्वारा भेजे गए चावल मांगकर कहते हैं जिन्हें सुदामा ने लज्जावश कांख मैं डुबाया था। वे सुदामा को गुरु संदीपन के आश्रम मैं घटित उस घटना का स्मरण करते हैं जब सुदामा से तृप्त हो जब सुदामा अपने घर पहुचते हैं तो वहाँ अपनी झोपडी के बदले महल देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। उन्हें भ्रम होता हैं की वे अपने घर का मार्ग भूलकर पुनः द्वारका ही आ गए हैं। अत्यंत निर्धनता भरा जीवन व्यतीत करने वाले सुदामा ईश्वर की कृपा से सम्पन को जाते हैं।