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नमस्कार मित्र!
इस पाठ में कश्मीर की सुप्रसिद्ध संत ललद्यद द्वारा रचित वाख का हिन्दी अनुवाद दिया गया है। ललद्यद जी ने अन्य भारतीय संतों की तरह प्रभु की भक्ति पर जोर दिया है। उन्होंने आडंबरों और पांखडों आदि का विरोध किया है। प्रथम वाख में कवियत्री ने अपने द्वारा किए गए ईश्वर प्राप्ति के प्रयासों के व्यर्थ हो जाने पर दुख व्यक्त किया है। द्वितीय वाख में उन्होंने अंहकार को त्यागकर सबके साथ समान भाव से व्यवहार करने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया है। तृतीय वाख में उन्होंने अपनी विवशता का वर्णन किया है। उनके अनुसार ईश्वर तक पहुँचने के लिए मनुष्य का सद्कर्मी होना आवश्यक है। उसके सद्कर्म ही अंत में उसके काम आते हैं। चतुर्थ वाख में कवियत्री ने ईश्वर को अपने अंदर ढूढ़ने को कहा है। उनके अनुसार आत्मज्ञान मनुष्य को ईश्वर के समक्ष खड़ा कर देता है बाकी सब मिथ्या है।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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