"swatantra aandolan mein mahilaw ke bhi shakriyeh bhagidari rhi hein" unke bare mein jankari prapt kejiye auur unme se kese ek pr project teyar kejiye?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियों ने सक्रिय भाग लिया और पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। इससे पहले स्त्रियाँ परदे में रहा करती थीं। घर की चारदीवारी ही उनका सबकुछ हुआ करती थी। परन्तु भारत की आज़ादी के लिए उन्होंने घर की चारदीवारी से निकलकर अंग्रेज़ों से लोहा लिया। 1857 के विद्रोह से ही झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, रानी चेनम्मा आदि बहुत सी रानियाँ मैदान में आयी थीं। परन्तु सौ साल बाद तो हर घर की स्त्री, युवती और बच्ची ने भारत के  स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, महादेवी वर्मा, सुभद्र कुमारी चौहान, आदि बहुत सी स्त्रियाँ हैं, जिन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत किया और भारत को स्वतंत्र करवाकर ही दम लिया। 

हम आपको सरोजिनी नायडू के विषय में कुछ पंक्तियाँ लिखकर दे रहे है । इसे आप स्वयं विस्तारपूर्वक लिखने का प्रयास करें । 

सरोजिनी नायडू भारत की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी,कवयित्री तथा गायिका थीं। इन्होंने आज़ादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इनका जन्म 13 फरवरी, 1879 में हैदराबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय तथा माता का नाम सुंदरी देवी था। सरोजिनी नायडू एक बंगाली ब्राह्मण परिवार से थी। इनके पिता एक जाने-माने विद्वान थे तथा माता जी बांग्ला साहित्य की कवयित्री थीं। सरोजनी नायडू आठ भाई-बहन थे। वह इन सबमें सबसे बड़ी और प्रतिभाशाली थीं। यह कवयित्री होने के साथ अच्छी गायिका भी थीं। इसलिए इन्हें 'भारत कोकिला' के नाम से पुकारा गया। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा मद्रास से प्राप्त की थी तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह इंग्लैंड गईँ। इन्हें बचपन से ही कविताएं लिखने में रूचि थीं। अपनी माताजी से इन्हें यह गुण विरासत में मिला था। इन्होंने गोल्डन थ्रैसोल्ड, बर्ड आफ टाइम एवं ब्रोकन विंग नामक प्रसिद्ध कविता संग्रह लिखें। पढ़ाई के दौरान इनकी मुलाकात डा. गोविंदराजुलू नायडू से हुई। 1898 में उनके साथ विवाह बंधन में बंध गई। सरोजिनी अब भी इंग्लैंड में ही थीं। परन्तु गांधी जी से मुलाकात ने जैसे उनके जीवन की दिशा ही बदल दीं और इन्होंने शीघ्र ही देश की राह पकड़ी। इसके पश्चात इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया। इन्होंने देश की जनता को अपने प्रभावशाली भाषणों से इतना प्रभावित किया कि लोग आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। भारत में इनकी लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं थी। आज़ादी के बाद यह भारत की पहली राज्यपाल बनीं।  

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