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प्रिय मित्र!
वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ प्रकृति की सुरक्षा भी आवश्यक है क्योंकि स्वयं के हित के लिए यह कार्य है। मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए, अनेक ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया जो हमारे लिए सोचना भी संभव नहीं था। मनुष्य ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अपनी कल्पना को साकार किया। इस वैज्ञानिक युग ने जहाँ एक ओर हमें प्रगति व उन्नति के पथ पर अग्रसर किया है , वहीं दूसरी ओर उसने पर्यावरण का सबसे बड़ा नुकसान किया है। आधुनिक युग ने प्रकृति की जीवन-शैली को आघात पहुँचाया है। इस आघात से उत्पन्न घाव से उभरने के लिए मनुष्य को शायद ही प्रकृति द्वारा समय दिया जाए। प्रकृति के बिना पृथ्वी पर रहने की कल्पना करना ही पूरे शरीर में सिहरन भर देता है। प्रकृति भगवान द्वारा दी गई बहुमूल्य भेंट है। प्रकृति , मनुष्य को सदैव देती रही है और हम याचक की तरह उसके समक्ष भिक्षा का पात्र लेकर खड़े रहे हैं। परन्तु आज स्थिति दूसरी बन गई है। हमने प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि इसने अपना मैत्री भाव छोड़कर विकराल रुप धारण कर लिया है। बढ़ते प्रकृति दोहन से जलीय , थलीय एवं वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ गया है। परन्तु भूमि प्रदूषण की अधिकता देखते ही बनती है। वनों के कटाव से भूमि के कटाव की समस्या और रेगिस्तान के प्रसार की समस्या सामने आई है। वनों के अत्यधिक कटाव ने जंगली जानवरों के अस्तित्व को संकट में डाला है। ऊर्जा के उत्पादन के लिए अचल संपदा का स्थायी क्षय हुआ है। रसायनों के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी संबंधी प्रदूषण को बढ़ाया है। इससे इसकी उर्वरता पर प्रभाव पड़ा है। इन सभी समस्याओं पर यदि अभी ध्यान नहीं दिया गया , तो आगे चलकर ये सभी समस्या विकरालता की हद को भी पार कर जाएँगी। आज पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण नित नई बिमारियाँ अपना मुँह फाड़े मनुष्य को काल का ग्रास बनाने के लिए तैयार हैं। एक बीमारी से हम निजात पाते नहीं कि नई बीमारी आ खड़ी होती है। हमें यह सोचना पड़ेगा कि यदि प्रकृति सुरक्षित रहेगी, तभी हम भी सुरक्षित रह पाएँगे। इसके बिना हमारा अस्तित्व संभव नहीं है।

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BECAUSE NATURE CONTAINS IMPORTANT THINGS FOR MAN LIKE TREES ETC
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