Utpreksha alankaar ka 1 udhaaran.

उत्प्रेक्षा अलंकार :- जिसको उपमा दी जा रही है, जिसकी उपमा दी जा रही है उसकी कल्पना कर ली जाती है। इसको पहचानने के लिए इसमें आए शब्द हैं - मनो, मानो, जानो, जनु, मनहु, मनु, जानहु, ज्यों, त्यों आदि इसमें केवल माना जाता है;

जैसे -

() सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।

मनहुँ नील मणि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।

(इसमें श्री कृष्ण के शरीर को नीलमणि पर्वत और उनके वस्त्र को सुबह की धूप की तरह कल्पना की गई है कि मानो वे ऐसे हैं।)

() उस काल क्रोध के तनु काँपने लगा

मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जागा

(इसमें अर्जुन के क्रोध से उसके शरीर में आए कंपन को सागर में आए तूफान की संभावना की गई है।)

() जरा-से लाल केसर से कि जैसे धूल हो गई।

() ले चला मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।

() पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

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