vaakh ki panktiyoon ke aarth

मित्र ,हम एक  साथ इतनी सारी व्याख्या नहीं दे सकते ,हम आपको कुछ पंक्तियों का सार दे रहे हैं कृपया अगली व्याख्या  के लिए प्रश्न को दोवारा भेंजें |

[1]इस कविता में रोजमर्रा की साधारण चीजों को उपमा के तौर पर उपयोग करके गूढ़ भक्ति का वर्णन किया गया है। नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को खींचता है। लेकिन इसमें भक्ति भावना के कारण कवयित्री ने अपनी रस्सी को कच्चे धागे का बताया है। भक्त के सारे प्रयास वैसे ही बेकार हो रहे हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश करता हो और वह इधर उधर बह जाता हैभक्त इस उम्मीद से ये सब कर रहा है कि कभी तो भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे भवसागर से पार लगायेंगे। उसके दिल में भगवान के नजदीक पहुँचने की इच्छा बार बार उठ रही है।
[2]यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है। यदि आप अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो समझिये कि आपने असली पूजा की। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने से ही ज्ञान के बंद दरवाजे आपके लिए खुल जाते हैं। हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हमें हमारे शरीर से बाहर की दुनिया से तालमेल और संपर्क बिठाने में मदद करती हैं। देखना, सुनना, सूंघना, स्पर्श करना और स्वाद लेना; ये सारी क्रियाएँ हमारे लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन यदि आपने इन किसी पर से भी अपना नियंत्रण खो दिया तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। उदाहरण के लिए स्वाद को लीजिए। मिठाई यदि ज्यादा खाई जाये तो उससे मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है।

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