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इस कविता में मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है , मेघों के आने का वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है।

कवि ने मेघों की तुलना सजकर आए अतिथि (दामाद) से करते हुए कहा है कि मेघ शहर से आए अतिथि की भाँति सज-धज कर आए हैं। जिस तरह मेहमान के आने पर गाँव के लड़के-लड़कियाँ भाग कर सबको इसकी सूचना देते हैं, उसी तरह मेघ के आने की सूचना देने के लिए हवा तेज़ गति से बहने लगी है। मेहमान को देखने के लिए जिस तरह लोग खिड़की-दरवाजों से झाँकते हैं, उसी तरह मेघों के दर्शन के लिए भी लोग उत्सुकतापूर्वक खिड़की-दरवाजों से बाहर आकाश की तरफ़ देखने लगे हैं। इस तरह छोटे-बड़े, काले-भूरे-सफेद रंग के मेघ अपने दल-बल के साथ आकाश में ऐसे छा गए हैं मानो कोई शहरी मेहमान सज-धज कर गाँव में आया हो।

जिस तरह मेहमान के आने पर गाँव के वृद्ध आगे आकर और हाथ जोड़कर अतिथि का आदर सत्कार करते हैं तथा पत्नी दीवार की ओट लेकर देखती हैं उसी तरह आकाश में बादलों के छा जाने पर आँधी चली जिससे बूढ़े पीपेल के पेड़ की डालियाँ झुकने लगीं और उससे लिपटी लता में भी हरकत होने लगी।

जैसे मेहमान (दामाद) के आने पर उसकी पत्नी के चेहरे पर छाई उदासी दूर हो जाती है और उसका चेहरा चमक उठता है। दोनों का मिलन हो जाने के बाद होने के बाद खुशी के कारण दोनों की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे वैसे ही आसमान में बादल गहराने लगे और बिजली चमकने लगी। बादलों के आपस में टकराने से वर्षा शुरु हो गई। मूसलाधार बारिश ने सबके मन को शांत और तृप्त कर दिया।

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