what is meaning of छायावाद ?
मित्र हम आपको इस विषय पर लिखकर दे रहे हैं।
'छाया' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शब्द साहित्य में पहली बार काव्यधारा के लिए प्रयोग में हुआ था। छाया का अर्थ होता है मनुष्य की बनती हुई परछाई। और काव्य में आत्म-अभिव्यक्ति को छाया के प्रतीक स्वरूप कहा गया था। इनका संबंध कहीं न कहीं अध्यात्म से था। पहले कवि अपनी कविताओं को छंदोबद रूप में लिखते थे। परन्तु इन कवियों ने इस परंपरा को तोड़ते हुए अपने ह्दय की अनुभूतियों को स्वच्छंद रूप में लिखना आरंभ किया। आगे चलकर स्वच्छंद छन्द में चित्रित उन मानव अनुभूतियों का नाम छाया सबको उपयुक्त जान पड़ा। महादेवी वर्मा के अनुसार सुष्टि के बाह्माकार पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है कि मनुष्य का ह्दय अभिव्यक्ति के लिए रोता हुआ दिखाई दिया। स्वच्छंद छन्द में चित्रित उन मानव अनुभूतियों का नाम छाया उपयुक्त ही था। छायावाद काल में रचनाओं में व्यक्तिवाद की प्रधानता, सौंदर्य भावना, प्रेम-भावना का प्राचुर्य, मानवतावादी दृष्टिकोण, वेदना और निराशा का स्वर, नारी का गौरवमय रूप, प्रकृति चित्रण, देश प्रेम की ज्वलन्त भावना आदि को अपनी कविताओं में मुख्य स्थान दिया। छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद माने जाते हैं। इस काल ने पुरानी काव्य परंपराओं से अलग रूप में कविता का निर्माण किया।
'छाया' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शब्द साहित्य में पहली बार काव्यधारा के लिए प्रयोग में हुआ था। छाया का अर्थ होता है मनुष्य की बनती हुई परछाई। और काव्य में आत्म-अभिव्यक्ति को छाया के प्रतीक स्वरूप कहा गया था। इनका संबंध कहीं न कहीं अध्यात्म से था। पहले कवि अपनी कविताओं को छंदोबद रूप में लिखते थे। परन्तु इन कवियों ने इस परंपरा को तोड़ते हुए अपने ह्दय की अनुभूतियों को स्वच्छंद रूप में लिखना आरंभ किया। आगे चलकर स्वच्छंद छन्द में चित्रित उन मानव अनुभूतियों का नाम छाया सबको उपयुक्त जान पड़ा। महादेवी वर्मा के अनुसार सुष्टि के बाह्माकार पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है कि मनुष्य का ह्दय अभिव्यक्ति के लिए रोता हुआ दिखाई दिया। स्वच्छंद छन्द में चित्रित उन मानव अनुभूतियों का नाम छाया उपयुक्त ही था। छायावाद काल में रचनाओं में व्यक्तिवाद की प्रधानता, सौंदर्य भावना, प्रेम-भावना का प्राचुर्य, मानवतावादी दृष्टिकोण, वेदना और निराशा का स्वर, नारी का गौरवमय रूप, प्रकृति चित्रण, देश प्रेम की ज्वलन्त भावना आदि को अपनी कविताओं में मुख्य स्थान दिया। छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद माने जाते हैं। इस काल ने पुरानी काव्य परंपराओं से अलग रूप में कविता का निर्माण किया।