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नमस्कार मित्र!
मीरा भक्तिकाल की कृष्णभक्ति शाखा की कवियत्री मानी जाती है। इन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण के प्रेम के लिए अर्पण कर दिया। कृष्ण उनके आराध्य देव थे। यह पाठ मीरा के उन्हीं आराध्य श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। इस पाठ में निहित दोनों पदों में मीरा अपने प्रिय कृष्ण से प्रार्थना करती हैं। वह उन्हें विभिन्न प्रकार से प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं। उनके अनुसार उनके कृष्ण हर तरह से समर्थ हैं। प्रथम पद में मीरा कृष्ण से अपनी रक्षा करने और कष्टों को दूर करने का आग्रह करती हैं। उनके अनुसार कृष्ण ने सदैव अपने भक्तों जैसे प्रह्लाद, द्रौपदी, बूढ़े गजराज आदि की सहायता तब की थी जब वह अत्यधिक कष्ट में थे। अत: उन्हें मीरा की रक्षा कर उनके कष्टों को दूर करना चाहिए। दूसरे पद में मीरा श्रीकृष्ण की सेवा करने और उनके नज़दीक रहने के उद्देश्य से उनकी सेविका बनकर साथ रखने का आग्रह करती हैं। उनके अनुसार वह कृष्ण की विभिन्न तरह से चाकरी करेगीं। ऐसा करने पर उन्हें श्रीकृष्ण का साथ मिलेगा। चाकरी के रूप में उन्हें श्री कृष्ण के रोज़ दर्शन हुआ करेंगे और वेतन के रूप में उनके नाम को सुमिरन करने का अवसर मिलेगा। यह संग्रह मीरा की सच्ची भक्ति और प्रेम का प्रतीक हैं।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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