what is vyavharikta and Aadarsh??

मित्र व्यवहारिकता का अभिप्राय है अनुभव या संसार का बरसों से चला आ रहा चलन। हम इस संसार में रहते हुए विभिन्न परिस्थितियों से गुजरते हैं हमारे साथ आए दिन छोटी-मोटी घटनाएँ होती रहती हैं। हर घटना हमें कुछ सिखाती है और यही अनुभव का रूप धारण करती हैं। हम अनुभवों के आधार पर आगे का कार्य निर्धारित करते हैं। इसी को व्यवहारिकता कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि यदि हम कपड़ों पर प्रेस कर रहे हैं। परन्तु हमें इस बात का अंदाज़ा नहीं होता है कि प्रेस को कितना गर्म रखें कि कपड़ा न जले। एक बार हमसे कपड़ा जल जाएगा परन्तु दूसरी बार हमें इस बात का अनुभव हो जाएगा कि इतने ताप में प्रेस से कपड़े नहीं जलेंगे। हम दूसरों को भी इसी प्रकार की सलाह देगें। यही व्यवहारिक ज्ञान होता है, जो उम्र के साथ बढ़ता चला जाता है और दूसरों को आदान-प्रदान किया जाता है। अनुभव हर तरह को हो सकता है और इसे कार्य का तरीका भी भिन्न होता है। अब हम आदर्शों तथा सिद्धांत की बात करते हैं। आदर्श तथा सिद्धांत वे नियम हैं, जो हमें दूसरों से भिन्न बनाते हैं और हमारे चरित्र को दृढ़ बनाते हैं। सिद्धांत हमारे द्वारा बनाए जाते हैं, जैसे मैं चोरी नहीं करूँगा, में झूठ नहीं बोलूगाँ, में किसी का बुरा नहीं सोचूँगा, मैं बड़ों की बात नहीं टालूँगा। परन्तु जब वही सिद्धांत लोगों द्वारा स्वीकार्य करके पूजने योग्य हो जाते हैं, तो वे आदर्श का रूप धारण कर लेते हैं। अतः यह एक होते हुए भी अलग हैं और अलग होते हुए भी एक हैं। क्योंकि सिद्धांत नए बनाए जाते हैं परन्तु आदर्श का रूप धारण करने के लिए उन्हें कुछ समय लगता है। भगवान राम ने जो-जो किया वे आज हमारे लिए आदर्श हैं। हम स्वयं के लिए कुछ नए सिद्धांत बनाते हैं जैसे आठ बजे तक घर पर आ जाऊँगा, अपने कार्य के समय में ज्यादा फोन पर बात नहीं करूँगा इत्यादि परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि हर सिद्धांत आदर्श बन जाएँ।

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