Yamraj ki Disha ka Pehle stanza ka Bhavarth Chahiye its urgent..??
पहले पहरे का भावार्थ है कि कवि की माँ ईश्वर की बहुत पूजा करती थी। माँ की बातों तथा स्वभाव से ऐसा लगता था कि माँ शायद भगवान से बातें करती थीं। कवि को यह भ्रम होता था कि ईश्वर ही उसे दुख सहने और जिंदगी जीने के मार्ग सुझाते थे।
अर्थात माँ भगवान की इतनी पूजा करती थी कि उसे किसी अन्य की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी। वह ईश्वर के बल से सारे कष्ट सह जाती थी। और जीवन में दृढ़तापूर्वक बढ़ रही थी।
अर्थात माँ भगवान की इतनी पूजा करती थी कि उसे किसी अन्य की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी। वह ईश्वर के बल से सारे कष्ट सह जाती थी। और जीवन में दृढ़तापूर्वक बढ़ रही थी।