निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मन्दिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए 'देव',
दूध को सो फेन फैल्यो आंगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
(i) सुधा मंदिर किस प्रकार की शिलाओं से बना हुआ है? वह किसकी तरह प्रतीत हो रहा है?
(ii) सुधा मंदिर के आंगन और वहाँ खड़ी सुंदरी के बारे में क्या कल्पना की गई है?
(iii) 'आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।"
काव्य-पंक्तियों का आशय समझाइए।
अथवा
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है।
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
(i) संगतकार मुख्य गायक की सहायता कैसे करता है?
(ii) संगतकार की आवाज़ में हिचक क्यों होती है? वह अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठाता है?
(iii) संगतकार की मनुष्यता के स्वरुप को अपने शब्दों में समझाइए।