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Question 1:

पाठ के किन अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है। क्या वर्तमान समय में स्त्रियों की इस सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

Answer:

पाठ के निम्नलिखित अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है-
(क) बेबी जब स्वयं के लिए काम का इंतज़ाम करने जाती है। उस समय लोगों द्वारा उसके अकेले रहने और पति से संबंधित बहुत से प्रश्न पूछते हैं।
(ख) बेबी को यदि घर पर पहुँचने में देर हो जाती तो, लोगों द्वारा उससे हज़ार सवाल पूछे जाते।
(ग) बेबी को अकेली देख लोग उसके साथ छेड़खानी करते। मकान मालिक का बेटा उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता।

समय बदल रहा है लोग आधुनिकता की बात करते हैं परन्तु स्त्रियों के प्रति समाज की सोच वहीं की वहीं है। भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा पहले तो बहुत शोचनीय थी। उन्हें पैरों के जूते के समान समझा जाता था। उनका जीवन पति और बच्चों तक ही सीमित था। उन्होंने घर के बाहर की दुनिया देखी ही नहीं थी। समय बदला और स्त्रियों की दशा में सुधार हुआ परन्तु यह सुधार कितना कारगर है यह कहा नहीं जा सकता है। आज नारी हवाई जहाज़ तक उड़ा रही हैं। परन्तु अपने घर में आकर उन्हें पति व ससुरालवालों का अत्याचार तथा शोषण ही झेलना पड़ रहा है। अपने अधिकारों के लिए वह लड़ ही रही है। नौकरी करती है परन्तु अपनी आवश्यकताओं के लिए उन्हें पति का मुँह देखना पड़ रहा है। यह दुर्दशा नहीं तो और क्या है। उसकी रक्षा के लिए कानून बनाएँ गए हैं। जब आवश्यकता पड़ती है, तो कानून बेकार साबित होते हैं। लोग कानूनों की ही धज्जियाँ उड़ाते नज़र आते हैं। आज स्त्रियों पर देहज उत्पीड़न, बलात्कार, शारीरिक शोषण इत्यादि बढ़ रहे हैं। बेबी किसी प्राचीन भारत की नागरिक नहीं है। वह वर्तमान भारत की ही नागरिक है। यहाँ पर उसकी स्थिति सही नहीं है। यह इस बात का प्रमाण है कि स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। यदि आया होता, तो बेबी को इन सब बातों का सामना न करना। अकेली स्त्री के साथ लोग इसी तरह का व्यवहार करते हैं और उसे अपनी जायदाद समझते हैं।

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Question 2:

अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफ़र में बेबी के समाने रिश्तों की कौन-सी सच्चाई उजागर होती है?

Answer:

अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफ़र में बेबी के सामने रिश्तों की यह सच्चाई उजागर हुई कि कोई अपना रक्त के संबंधों से नहीं मनुष्य के हृदय से होता है। बेबी के परिवार में माता-पिता तथा भाई थे। इनके होते हुए भी उसे कठिन जीवन जीना पड़ा। उसने सभी चुनौतियों का सामना अकेले ही किया। उसका साथ दिया तो तातुश, उनके परिवार और मित्रों ने। उनके ही प्रोत्साहन और प्यार से वह आगे बढ़ पायी। अपने बच्चों को एक सुखमय जीवन दे पायी।

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Question 3:

इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलु नौकरों को और किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस पर विचार कीजिए।

Answer:

घरेलु नौकरों को बहुत प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा। वे इस प्रकार की हैं-
(क) मालिक द्वारा समय पर वेतन न देना।
(ख) स्त्रियों का शारीरिक शेषण करना।
(ग) उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना।
(घ) उनका वेतन काट लेना।
(ङ) आर्थिक सुरक्षा का अभाव।
(च) अनियमित नौकरी।

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Question 4:

आलो-आँधारि रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को समेटे है। किन्हों दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

Answer:

आलो-आँधारि रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याएँ थीं; जैसे बच्चों की ज़िम्मेदारी, अपने लिए काम की तलाश, अपने लिए छत की तलाश, अपने सम्मान की रक्षा, बच्चों का भविष्य इत्यादि। इनके साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दे भी इस रचना के माध्यम से दिखाई देते है; जैसे- बाल मज़दूरी, स्त्री शोषण, गरीबी।
बेबी एक ऐसी महिला थी, जो अपने पति को छोड़कर अपने बच्चों के साथ रह रही थी। उस पर तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी थी। वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित थी। इसकी अतिरिक्त अकेली स्त्री के रूप में स्वयं के मान-सम्मान की रक्षा करना उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। दो समस्याएँ थीं, जो बेबी के लिए बहुत बड़ा प्रश्न थीं-

(क) बाल मज़दूरी तथा गरीबी-  बेबी को अपने बेटे को गरीबी के कारण किसी व्यक्ति के घर में काम करने के लिए भेजना पड़ा। बॉल मज़दूरी अपराध है मगर बेबी विवश थी। आजकल बहुत से लोग होते हैं, जो बच्चों बॉल मज़दूरी करवाते हैं। यह बहुत बड़ा अपराध है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहाँ की आबादी भी बहुत अधिक है। भारत में आबादी का एक बहुत बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे आता है। जिन्हें नौकरी, रोटी, कपड़ा सरलता से नहीं मिल पाते, वे सब इस रेखा के अंदर आते हैं। इस तरह के हालात ऐसे लोगों में अधिकतर पाए जाते हैं, जिनका परिवार बहुत बड़ा होता है और कमाने वाले बहुत ही कम। परिणामस्वरूप हालात ऐसे बन जाते हैं कि इन परिवारों के बच्चे छोटी-छोटी उम्र में कमाने के लिए घर से बाहर जाने लगते हैं। छोटी उम्र में नौकरी करने के कारण ये बाल श्रमिक कहलाते हैं। लोग इनकी छोटी उम्र को देखते हुए  इनसे काम अधिक करवाते हैं और पैसे कम देते हैं। पढ़ने की उम्र में रोटी के लालच में यह हर स्थान पर नौकरी करते देखे जाते हैं। अधिकतर गाँवों से रहने आए परिवारों, गरीब परिवारों, अशिक्षित परिवारों के बच्चे बाल श्रमिक बन जाते हैं।

(ख) अशिक्षित स्त्री अपने अधिकारों से वचिंत होती है। कोई भी उसका फ़ायदा उठा सकता है। समाज में अशिक्षित होने के कारण उसका शोषण सबसे ज्यादा होता है। यदि स्त्री शिक्षित है तो वह स्वयं को स्वाबलंबी बना लेती है, इससे वह अपने भरण पोषण के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं होती है। इस तरह व अपने ऊपर हो रहे शोषण का विरोध कर स्वयं को बचा सकती है। स्त्री का शिक्षित होना समाज, देश व उसके स्वयं के विकास के लिए अति आवश्यक है। जिस स्थान पर स्त्री शिक्षित होती है, वहाँ इतनी विषमताएँ देखने को नहीं मिलती है। हमें चाहिए की स्त्रियों को नाम का आदर व सम्मान न देकर उन्हें जीवन में सही विकास करने व जीवन स्वतंत्र रूप से जीने के अवसर प्रदान करने चाहिए। इसके लिए सबसे पहले उनकी शिक्षा का उचित प्रबंध करना चाहिए

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Question 5:

तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो- जेठू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?

Answer:

जेठू का यह कथन रचना संसार के इस सत्य को उद्घाटित करता है कि एक रचनाकार का जन्म यूहीं नहीं होता है। प्रोत्साहन तथा सही दिशा देने से बेबी भी बेबी हालदार साहित्यकार बन सकती है। बेबी के अंदर एक रचनाकार के गुण थे, यह उसको नहीं पता था। लेकिन तातुश तथा जेठू जैसे लोगों ने उसका हौसला बढ़ाकर तथा उसे लिखने-पढ़ने के लिए प्रेरित करके उसे साहित्यकार बना दिया। ऐसी ही आशापूर्ण देवी थीं, जिन्होंने एक गृहणी से स्वयं को साहित्यकार बना दिया था। हम प्रयास करें और हमें उचित प्रोत्साहन मिले, तो हम भी एक रचनाकार बन सकते हैं।

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Question 6:

बेबी की ज़िंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन कैसा होता? कल्पना करें और लिखें।

Answer:

बेबी की ज़िंदगी में तातुश परिवार का आना देवयोग के समान लगता है। उनके परिवार ने ही उसके जीवन की भयानकता को सुख में बदल दिया। तातुश तथा उसके परिवार ने बेबी तथा उसके बच्चों की ज़िंदगी को संवार दिया। बेबी ने ज़िंदगी का अर्थ दूसरों के घर में बर्तन धोकर और सफ़ाई करके ही गुज़ार देना था। लेकिन तातुश ने बेबी को उस ज़िंदगी से बाहर निकाला तथा उसके जीवन को नया आयाम दिया। तातुश की मेहनत ही थी कि बेबी ने बांग्ला साहित्य को अपनी जीवनी के रुप में एक बेजोड़ सच्ची रचना दी। तातुश का परिवार यदि तातुश के जीवन में आया नहीं होता, तो उसके बच्चे दूसरों के घरों में काम कर रहे होते। स्वयं बेबी दूसरों के घर में साफ़-सफ़ाई का काम कर रही होती। लोगों उसके साथ बुरा व्यवहार कर रहे होते। वो तथा उसके बच्चे झुगियों में भटक रहे होते। हमें बेबी हालदार जैसी लेखिका नहीं मिलती। उसके स्थान पर एक सफ़ाई कर्मचारी मिलती।

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Question 7:

'सबसे कोई पेशाब के लिए उसमें घुसता तो दूसरा उसमें घुसने के लिए बाहर खड़ा रहता। टट्टी के लिए बाहर जाना पड़ता था लेकिन वहाँ भी चैन से कोई टट्टी नहीं कर सकता था क्योंकि सुअर पीछे से आकर तंग करना शरू कर देते। लड़के-लड़कियाँ, बड़े-बूढ़े सभी हाथ में पानी की बोतल ले टट्टी के लिए बाहर जाते। अब वे कहाँ बोतल संभालें या सुअर भगाएँ! मुझे तो यह देख-सुनकर बहुत खराब लगता'- अनुवाद के नाम पर मात्र अंग्रेज़ी से होने वाले अनुवादों के बीच भारतीय भाषाओं में रची-बसी हिंदी का यह एक अनुकरणीय नमूना है- उपर्युक्त पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए बताइए कि इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं।

Answer:

इस पाठ का अनुवाद करते हुए अनुवादक ने बहुत ध्यान रखा है। उसने कहीं भी अंग्रेज़ी शब्दों का यूहीं प्रयोग नहीं किया है। उसने हिन्दी पाठकों की रुचि को ध्यान में रखा है और तभी अनुवाद किया है। ऐसा अनुवाद आज बहुत कम देखने को मिलता है। इन पंक्तियों में लेखक ने जो चित्र उकेरा है, उससे पता चल जाता है कि हिन्दी शब्दों के प्रयोग ने घटना को सजीव कर दिया है। उस घटना का चित्र हमारी आँखों में आने लगता है। पाठ को पढ़ने के बाद तथा प्रश्न में दी गई पंक्तियों को पढ़ने के बाद हम इस कथन से सहमत है।

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Question 1:

पाठ में आए इन व्यक्तियों का देश के लिए विशेष रचनात्मक महत्त्व है। इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें और कक्षा में चर्चा करें।
श्री रामकृष्ण, रवींद्रनाथ ठाकुर, काज़ी नज़रुल इस्लाम, शरतचंद्र, सत्येंद्र नाथ दत्त, सुकुमार राय, ऐनि फ्रैंक।

Answer:

(क) श्री रामकृष्ण भारते के महान संत और एक विचारक थे। उनका जन्म 18 फरवरी, 1836 में बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। वह बचपन से ही ईश्वर के दर्शन करना चाहते थे। वे काली के बड़े भक्त थे। उन्होंने इस्लाम तथा ईसाई धर्म को भी पढ़ा तथा जाना ये सब धर्म एक ही हैं। ये सब ईश्वर प्राप्ति के साधन हैं मगर इनके तरीके अलग-अलग है। यही कारण है कि वे सब धर्मों का समान रुप से आदर करते थे।

(ख) 7 मई, 1861 को रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ। इनका जन्म कलकत्ता में सांको भवन पर हुआ। इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ था। इनका परिवार कलकत्ता के समृद्ध परिवार में से था। ये महान विचारक, कवि, नाटककार, चित्रकार, कहानीकार तथा गीतकार थे। इन्होंने बंगाल साहित्य को अपनी रचनाओं से सजा तथा संवारा है। अपना रचना गीताजंलि के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्होंने पश्चिमी संस्कृति को भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार करवाया। भारत को राष्ट्रगान इन्हीं ने दिया था।

(ग) काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म आसनसोल के समीप चुरुलिया में 29 अगस्त, 1899 में हुआ था। यह बंगाला साहित्य के उत्तम हीरों में से एक गिने जाते हैं। इन्होंने तकरीबन 3000 गाने लिखे। ये एक लेखक, कवि, अभिनेता, संगीतज्ञ, संगीतकार, गायक तथा दार्शनिक थे। इनकी कविता में विद्रोह का गुण मिलता है। इसी कारण इन्हें विद्रोह कवि भी कहा जाता है। वे प्रायः मनुष्य के ऊपर मनुष्य द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों पर लिखते थे। इनके संगीत को नज़रुल गीती कहकर पुकारा जाता है।

(घ) शरतचंद्र बांगला साहित्य के कई चमकते सितारों में से एक सितारा है। इसकी रचनाओं में जो सच्चाई और सजीवता दिखाई देती है, वह शायद किसी अन्य लेखक के लेखन में देखी जा सकती है। इनका जन्म पश्चिम बंगाल के देवानंदपुर नामक स्थान में 15 सितंबर, 1876 में हुआ था। इनके पिता का नाम मोतीलाल तथा माता का नाम भुवनमोहिनी था। शरत का बचपन घोर गरीबी में गुज़रा मगर इस पर उनकी छाप नहीं पड़ी। वे स्वभाव से उपकारी थे। बांगला साहित्य को इन्होंने देवदास, बड़ी दीदी, परिणीता, चरित्रहीन, श्रीकान्त जैसे उपन्यास दिए। उनके रचनाओं ने बांगला साहित्य को विशाल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

(ङ) सत्येंद्र नाथ दत्त भी बंगला साहित्य के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। इनका जन्म 11 फरवरी 1882 में हुआ था। इनके पिता का नाम रंजनीकांत दत्त था और वे एक व्यापारी थे। ये बंगाली पत्रिका भारती के लिए कविताएँ लिखते थे। इनकी कविताओं ने बंगला साहित्य को समृद्ध किया।

(च) सुकुमार राय बांग्ला साहित्य के चमकते सितारों में से एक हैं। इनका जन्म 30 अक्टूबर, 1887 में कलकत्ता में हुआ था। ये रवींद्रनाथ ठाकुर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम उपेंद्रनाथ चौधरी था। इनके पिता भी बाल-साहित्यकार थे। अतः लेखन इनके खून में था। सुकुमार राय के पुत्र सत्यजित राय थे। इनके पुत्र सिनेमा जगत के प्रसिद्ध फिल्मकार थे। सुकुमार राय ने कविता, लेखन तथा नाटकों की रचना की।

(छ) ऐन फ्रेंक ऐसी ही यहूदी परिवार से थी। वह कोई संत या कवि नहीं थी। वह एक साधारण बच्ची थी। उसे हिटलर की यहूदियों से नफ़रत के कारण के बारे में पता नहीं था। वह अकारण उस यातना को झेल रही थी, जिससे वह अनजान थी। उसे विवश होकर दो साल तक छिपकर रहना पड़ा। उसकी यह तड़प, चिंता, परेशान, आतंक उसकी डायरी में हर जगह दिखाई पड़ता है। एक आम सी बच्ची अपने मन में विद्यमान भय, परेशानी, कमी, व्याकुलता, सपने, इच्छाएँ, दुख, सुख सब एक डायरी में लिखकर संतोष पाती है। इस डायरी को पढ़कर पता चलता है कि किसी मनुष्य की एक बीमार सोच के कारण कितने बेगुनाह लोगों को यातनाएँ झेलने पड़ती है। इस डायरी में विद्यमान यथार्थ उस समय की भयानकता को कितना सरलता से उकेर देता है, देखते ही बनता है। ऐसा कोई मंजझा हुआ कवि या संत भी नहीं कर पाता। इसमें कल्पना या बनावट नहीं है। इसमें जो है वह केवल सत्य है। जो एक मासूम सी बच्ची ने अपनी मासूमियत से उकेरा है। वह अनजाने में ऐसे हज़ारों लोगों का प्रतिनिधित्व करने लगती है, जो उसी के समान इस यातना को झेल रहे हैं।
ऊपर दिए सभी नामों ने साहित्य को कुछ-न-कुछ दिया है। इनकी देन ने साहित्य को विस्तृत बनाया है। इनका योगदान है, जो हमें आज तक जीने की राह दिखा रहा है। साहित्य को यूहीं समाज का दर्पण नहीं कहा जाता है। ऐसे ही महान लोगों के योगदान ने इस साहित्य को मानव के लिए हितकारी और उपयोगी बनाया है।



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