NCERT Solutions for Class 12 Humanities Hindi Chapter 9 फ़िराक गोरखपुरी (रुबाइयाँ, गज़ल) are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for फ़िराक गोरखपुरी (रुबाइयाँ, गज़ल) are extremely popular among class 12 Humanities students for Hindi फ़िराक गोरखपुरी (रुबाइयाँ, गज़ल) Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of class 12 Humanities Hindi Chapter 9 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.

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Question 1:

शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?

Answer:

शायर राख के लच्छे को बिजली की चमक कहकर भाई-बहन के संबंध की घनिष्टता को व्यक्त करना चाहता है। भाई-बहन को शायर बादल की घटा तथा बिजली के रूप में अभिव्यक्त करता है। राखी उसी घनिष्टता का प्रतीक है, जो प्रत्येक भाई के हाथ में राखी के धागे के रूप में दिखाई देता है। यह दोनों के मध्य प्रेम तथा पवित्रता का सूचक है।

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Question 2:

खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?

Answer:

खुद का परदा खोलने का तात्पर्य है कि अपना असली चेहरा दूसरों को दिखा देते हैं। शायर कहता है कि जब हम किसी की बुराई कर रहे होते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि हम सामने वाले को अपना असली चेहरा दिखा देते हैं। उससे पहले हमारे बारे में कोई भी राय क्यों न कायम की हो। जैसे ही हम किसी की बुराई करते हैं, उसे पता चल जाता है कि हम अच्छे इंसान नहीं है। बुराई करना कोई अच्छी बात नहीं है। दूसरे से किसी ओर की बुराई करना, तो और भी बुरी बात है। अतः हमें चाहिए कि किसी के लिए भला-बुरा बोलने से पहले यह जान ले कि हम स्वयं की छवि को कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं।

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Question 3:

किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं- इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।

Answer:

इस पंक्ति से पता चलता है कि शायर को उसकी किस्मत ने कभी कुछ नहीं दिया है। उसने जो पाया है, अपने परिश्रम से पाया है। भाग्य के हाथों तो वह हमेशा खाली हाथ लौटा है। प्रायः मनुष्य कुछ अपने परिश्रम के हाथों और कुछ भाग्य के हाथों पाता है। शायर के साथ ऐसा नहीं हुआ है। किस्मत की तरफ से  उसने हमेशा मार खाई है। अतः वह कहता है कि किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।

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Question 1:

टिप्पणी करें

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।

(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।

Answer:

(क) गोदी का चाँद शिशु को कहा गया है। वह माँ के लिए चाँद के समान है। जिस प्रकार लोगों को आसमान में चमकने वाला चाँद प्रिय होता है, ऐसे ही माँ को अपनी गोदी में खेलता अपना बच्चा प्रिय होता है। अतः इनमें गहरा संबंध है। इसके अतिरिक्त एक अन्य संबंध इन दोनों के मध्य है। प्रायः छोटे बच्चों को चाँद प्रिय होता है। वे अपनी माँ से चाँद की माँग किया करते हैं। अतः माँ आईने में बच्चे को उसकी परछाई दिखाकर, उसे ही चाँद बता देती है। इस तरह जहाँ बच्चा स्वयं को चाँद मानकर प्रसन्न हो जाता है, वहीं माँ का दिल भी प्रसन्न हो जाता है।
 

(ख) सावन के महीने में रक्षाबंधन का त्योहार आता है। अतः कवि ने इन दोनों को बहुत ही सुंदर तरीके से आपस में जोड़ा है। उसके अनुसार इस त्योहार में प्रायः आसमान में बदलियाँ घिर जाती हैं। उनके बीच में बिजली दमकना आरंभ हो जाती है। जैसे घटाओं का संबंध बिजली से होता है, वैसे ही एक भाई का संबंध अपनी बहन से होता है। इनके मध्य प्रेम भाई के हाथ में बिजली के समान चमकती रोशनी है।

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Question 1:

इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए।

Answer:

रुबाइयों में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोग इस प्रकार हैं-

(क) लोता देती है

(ख) घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े

(ग) गेसुओं में कंघी करके

(घ) रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक

(ङ) ज़िदयाया है

(च) रस की पुतली

(छ) आईने में चाँद उतर आया है

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Question 2:

फ़िराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज़ पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसे ही मीर की कुछ गज़लें ढूँढ़ कर लिखिए।

Answer:

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है

लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश के बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मै-ओ-ख़ोर की तितली का तारा जाने है

आगे उस मुतक़ब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद् ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़िआँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है

चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है

क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्यद बच्चा
त'एर उड़ते हवा में सारे अपनी उसारा जाने है

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है

क्या क्या फ़ितने सर पर उसके लाता है माशूक़ अपना
जिस बेदिल बेताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है

आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे
यार के आ जाने को यकायक उम्र दो बारा जाने है

रख़नों से दीवार-ए-चमन के मूँह को ले है छिपा यअनि
उन सुराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है

तशना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ीकश
दमदार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है

मीरे के कुछ शेर
1. दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके

पछताओगे सुनो हो , ये बस्ती उजाड़कर

2. मैं रोऊँ तुम हँसो हो, क्या जानो 'मीर' साहब
दिल आपका किसू से शायद लगा नहीं है

(नोटः सभी गज़लों के स्थान पर हम एक गज़ल तथा दो शेर दे रहे हैं।)

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Question 1:

कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाज़े बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फ़िराक की गज़ल-रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँढ़िए।
 
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौनो लैहों।
सूरदास 
(ख) वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान
सुमित्रानंदन पंत 
(ग) सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार
कबीर 

Answer:

(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौनो लैहों। (सूरदास)

पाठ से मिलती पंक्तियाँ-
आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है

(ख) वियोगी होगा पहला कवि (सुमित्रानंदन पंत)
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान
पाठ से मिलती पंक्तियाँ-
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।

(ग) सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार (कबीर)
पाठ से मिलती पंक्तियाँ-
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं



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