NCERT Solutions for Class 12 Humanities Hindi Chapter 5 गजानन माधव मुक्तिबोध (सहर्ष स्वीकारा है) are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for गजानन माधव मुक्तिबोध (सहर्ष स्वीकारा है) are extremely popular among class 12 Humanities students for Hindi गजानन माधव मुक्तिबोध (सहर्ष स्वीकारा है) Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of class 12 Humanities Hindi Chapter 5 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.

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Question 1:

टिप्पणी कीजिएः गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।

Answer:

(क) गरबीली गरीबी- इसका बहुत गहरा अर्थ है। एक गरीब आदमी अपनी गरीबी से परेशान तथा हताश रहता है। उसे गरीबी पर दुख होता है। इस कारण उसमें आत्मविश्वास की कमी रहती है। निराशा उसके चारों तरफ रहती है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए गरीबी दुख का कारण नहीं होती बल्कि अभिमान का कारण होती है। कवि ऐसे ही लोगों में से एक है। उसने गरीबी को गरबीली बोलकर उसका ही नहीं बल्कि हर गरीब व्यक्ति को सम्मान देने का प्रयास किया है। एक व्यक्ति गरीब अवश्य होगा, निराशा से भरा होगा, आत्मविश्वास से विहिन हो लेकिन अपनी गरीबी से तंग आकर वह ऐसा कार्य नहीं करता, जो उसे समाज का शत्रु बना दे। अतः उनकी गरीबी उन्हें बुरे मार्ग पर नहीं ले जाती है। वह ईश्वर का नाम लेकर जीवन जीते है। उनका यह जीवन गर्व करने लायक होता है।
 

(ख) भीतर की सरिता- भीतर की सरिता से कविता का तात्पर्य प्रेम रूपी भावना से है। यह प्रेम हृदय के अंदर नदी के समान प्रवाहित होता है। जैसे नदी मनुष्य के जीवन का पालन-पोषण करती है, वैसे ही प्रेम की भावना मनुष्य का तथा उसके आपसी संबंधों का पालन-पोषण करती है। इसी के प्रवाह को सरिता का नाम दिया गया है। यह ऐसी पवित्र नदी के समान है, जो संबंधों तथा लोगों में जीवनदान करती है।
 

(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता- कवि की प्रेमिका के साथ आत्मीय संबंध है। वह उसके साथ आत्मीय भरा व्यवहार करती है। उसे विभिन्न प्रकार से वह बहलाती है तथा सहलाती है। प्रेमिका के आत्मीयता से भरे व्यवहार को कवि ने ऐसा कहा है। लेकिन इन पंक्तियों में कवि के इस व्यवहार के प्रति शिकायती भाव भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। कवि को हर समय प्रेमिका की  बहलाने और सहलाने वाला व्यवहार पसंद नहीं आता होगा।

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Question 2:

इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।

Answer:

मीठे पानी का सोता टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग है। इसमें कवि ने अपने हृदय के अंदर स्नेह तथा प्रेम की भावनाओं को मीठे पानी का सोता कहा है। उसने स्नेह तथा प्रेम की भावनाओं की झरने से तुलना की है।

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Question 3:

व्याख्या कीजिएः
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!


उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?

Answer:

कवि कहता है कि प्रिय तुम्हारा-मेरा संबंध बड़ा अजीब है। मुझे यह समझ नहीं आता है। इसकी गहराई इससे ही पता चलती है कि मैं जितना प्रेम तुम्हें देता हूँ उसके बाद भी वह फिर आ जाता है। अर्थात जितना प्रेम तुम पर उड़ेलता हूँ मैं फिर से प्रेममय हो जाता हूँ। कवि कहता है कि अपने हृदय की इस स्थिति से मैं विस्मित हूँ। मुझे समझ नहीं आता है कि यह सब क्या हो रहा है। मेरे हृदय में यह कहाँ से आ रहा है। मेरे हृदय में कब से यह मीठे पानी के झरने रूपी भावनाएँ संचारित हो रही हैं। इस झरने की विशेषता है कि यह कभी न समाप्त होने वाला है। इन सबके मध्य मुझे ज्ञात हुआ है कि मेरे हृदय में प्रेमरूपी जल का सोता बह रहा है और बाहर तुम मेरे जीवन में हो। तुम्हारा सुंदर खिलता हुआ चेहरा मेरे जीवन को इसी प्रकार प्रकाशित कर रहा है, जैसे चाँद रातभर धरती को प्रकाशित करता है। यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात की गई क्योंकि कवि जीवन के धरातल में व्याप्त सच्चाई को भली प्रकार से जानता है। उसके जीवन में जो भी खुशियों के पल हैं, वे सब उसकी प्रेमिका के संग के कारण हैं। यदि प्रेमिका का प्यार न रहे, तो जीवन में व्याप्त दुख उसे छिन्न-भिन्न कर दे। कवि ने दुख को अंधकार की संज्ञा दी है।



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Question 4:

तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।


(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबंधित है कविता का 'तुम') को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

Answer:

(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए दक्षिणी ध्रुव विशेषण का प्रयोग किया गया है। इससे विशेष्य में व्याप्त जो कालिमा है, वह और भी काली प्रतीत होती है। दक्षिणी ध्रुव में 6 महीने तक सूर्योदय नहीं होता है। अतः वहाँ कभी न समाप्त होने वाला काला अंधकार व्याप्त रहता है।

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में दुख के समय को अमावस्या कहा है। जिस प्रकार अंधकार पूरे संसार को ढक लेता है, वैसे ही दुख रूपी अंधकार कवि के शरीर तथा आत्मा को ढक लेना चाहता है।

(ग) वह रमणीय उजेला को झेले और उसी में नहा ले।– स्थिति का वर्णन पहले कविता में किया गया है। कविता की पंक्तियाँ जो प्रश्न में दी गई हैं, वहाँ पर अंधकार-अमावस्या की बात की गई है। लेकिन जो पंक्ति में उजेला शब्द है, वह इसके ठीक विपरीत स्थिति है। जिस प्रकार दुख रूपी अंधकार अमावस्या कवि के जीवन में व्याप्त है, वैसे ही लेखिका का सुंदर चेहरा उस प्रकाश के समान है, जो इस अंधेरे को उसके जीवन में गहराने नहीं देता है। प्रेमिका का सुंदर चेहरा उसे प्रकाशित करता रहता है।

(घ) कवि का यह 'तुम' लेखक की प्रेमिका है। अपनी प्रेमिका को भूल जाने के लिए कवि ने अपना बात को और भी प्रभावी रूप से इन पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त की है। उसने भूल जाने की, उसके जीवन में प्रेमिका के प्रभाव को उतार लेने, उसे झेलने तथा नहा लेने रूपी युक्तियाँ अपनाई हैं।

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Question 5:

बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है- और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है  में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।

Answer:

इसके अंदर व्याप्त अंतर्विरोध हम इस प्रकार पाते हैं। एक तरफ कवि अपनी प्रेमिका के आत्मीय संबंध से सुखी दिखाई देता है। उसे लगता है कि प्रेमिका का आत्मीयपन उसके जीवन में समा चूका है। उसके चेहरे मात्र से ही अपने जीवन को प्रकाशित मानता है। लेकिन दूसरे ही पल वह लेखिका की आत्मीयता को सह नहीं पाता। उसे प्रेमिका का अधिक बहलाना और सहलाना अखरने लगता है। उसे यह व्यवहार कष्ट देता है। लेकिन इसके बिना वह जी भी नहीं पाता। इस प्रकार की स्थिति को ही अंतर्विरोध कहते हैं। जहाँ किसी चीज़ के बिना मनुष्य रह नहीं सकता और फिर उससे कष्ट भी पाता है।

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Question 1:

अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक ज़रूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और ज़रूरी कष्टों की सूची बनाएँ।

Answer:

बिलकुल अतिशय मोह भी त्रास का कारक होता है। जब हमें कोई वस्तु इतनी प्रिय लगती है कि हम उसे एक क्षण के लिए भी अपने सामने से हटा नहीं पाते हैं। उसकी जुदाई हमें दुख देने लगे, तो उसे अतिशय मोह कहते हैं। उस वस्तु के प्रति मोह हमें अत्यधिक कष्ट देने लगता है। उसके टूटने, खोने, चोरी होने, अलग होने, छोड़ देने के भय मात्र से ही हम चिंता की अग्नि में जल उठते हैं। अतः उस समय अतिशय मोह हमारे लिए त्रास की स्थिति पैदा कर देता है। ऐसे कुछ कष्टों की सूची दे रहे हैं, जिनका होना ज़रूरी है-

(क) बच्चे को माँ की गोद से निकालकर स्कूल भेजना।

(ख) अपने घर तथा परिवार को छोड़कर नौकरी के लिए किसी अन्य स्थान में चले जाना।

(ग) बीमारी में स्वादिष्ट भोजन के स्थान पर खिचड़ी तथा दलिया का सेवन करना।

(घ) बीमारी की अवस्था में कड़वी दवाइयाँ खाना या इंजेक्शन लगवाना।

(ङ) अपने वेतन का अधिक भाग किराए के रूप में दे देना।

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Question 2:

प्रेरणा शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।

Answer:

प्रेरणा वह स्रोत है, जो मनुष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। यह वह भावना है, जो मन तथा हृदय में वास कर जाए, तो मनुष्य पहाड़ में भी छेद कर देता है। प्रेरणा ने ही बड़े-से-बड़े कार्य को संभव बनाया है। माँझी जिसे आज 'आयरन मेन' के नाम से जाना जाता है। उसकी पत्नी की मृत्यु ने उसे ऐसी प्रेरणा दी कि उसने गाँव के मध्य खड़े पहाड़ को भेद डाला। उसने आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसा रास्ता बना डाला कि किसी की मृत्यु उसकी पत्नी के समान न हो। यह प्रेरणा स्रोत ही तो है, जिसने हाड-माँस के मनुष्य को 'आयरन मेन' की उपाधि दिलवा डाली। प्रेरणा का अहसास जीवन की दिशा बदल सकता है। मृत्यु को जीवन में और कष्टों को सुख में बदल सकता है। अतः इसका महत्त्व जितना भी गाया, जाए कम है।
 
मेरे जीवन में बात उस समय की है, जब मैं परीक्षा से दो महीने पहले बीमार पड़ गया। पीलिया की बीमारी ने ऐसा घेरा की मेरे बिस्तर में से उठना कठिन हो गया। मेरी लापरवाही ने बीमारी को और भयंकर बना दिया। 15 दिन अस्पताल में और 30 दिन बिस्तर में पड़ा रहा। माता-पिता को मेरी चिंता थी। अपनी बीमारी के कारण में स्वयं को असहाय पाता था। आखिरकार मेरी कक्षा अध्यापिका का मुझसे मिलना हुआ। वे मुझे देखने घर पर आईं। उनके बोले कुछ शब्दों ने मेरे हृदय में प्रेरणा का स्रोत भर दिया। उनका कहना था कि तुम्हारे अंदर कुछ कर दिखाने का इरादा है और मैं यह जानती हूँ कि यह बीमारी तुम्हें नहीं रोक सकती है। जाने कैसा जादू किया उनके इन शब्दों ने और मैं उसी दिन से तैयारी में लग गया। माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं इस साल परीक्षा दूँ। डॉक्टर ने मुझे चार महीने तक पूरा आराम करने के लिए कहा था। मैं उनकी बात नहीं माना। बिस्तर में लेटे-लेटे ही मैं अपनी तैयारी पूरी करने लगा। पिताजी और माताजी मुझे साथ लेकर परीक्षा देने ले जाते थे। जब मेरा परीक्षा परिणाम सामने आया, तो अध्यापिका ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा- 'देखा तुम्हें कोई नहीं रोक सकता।' उस साल मैंने दसवीं के बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जितना दंग अन्य लोग थे, उतना मैं स्वयं दंग था। आज मैं बारहवीं कक्षा में हूँ और अपनी अध्यापिका के वचन कभी नहीं भूलता। उस समय उनके द्वारा मिली प्रेरणा ने मेरे जीवन की दिशा, तब बदल दी जब में हताशा हो चूका था।

(नोट: विद्यार्थी प्रयास करें कि इस प्रश्न में अपना अनुभव लिखें तभी इस प्रश्न का उत्तर पूर्ण हो पाएगा।)

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Question 3:

'भय' शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीज़ों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।

Answer:

भय ऐसा भाव है, वह तब पैदा होता है, जब हम किसी स्थिति या वस्तु को पसंद नहीं करते या उसका सामना करना नहीं चाहते हैं। यह वह स्थिति होती है, जब हम भागते हैं। जब हमारे सामने वह उपस्थित हो जाता है, तो भय हमें आ घेरता है। इससे हर कोई बचना चाहता है क्योंकि सबके मन में किसी-न-किसी के लिए भय विद्यमान होता है। लोगों के मन में चूहे, कॉकरोज, छिपकली, भूत, ऊँचाई, अंधेरे इत्यादि का भय बैठा रहता है। मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता था। बहुत समय तक मैं इसके कारण परेशान रहा। रात को घर में अकेले रहने में भी मुझे डर लगता था। एक दिन माँ की बहुत तबीयत खराब हो गई थी। पिताजी को उन्हें अस्पताल लेकर जाना पड़ा। उस दिन में घर पर अकेला रह गया। रात में बिजली चली गई। मेरी स्थिति बहुत खराब हो गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। दस मिनट तक मैं यूहीं बैठा रहा। भय से मेरी आँखें बंद हो रही थीं। मैंने देखा कि बंद आँखों में भी मुझे अंधकार दिख रहा था। मैंने सोचा कि मैं आँखें बंद होने पर जो अंधेरा देखता हूँ, उससे मुझे डर नहीं लगता। इस अंधेरे और उस अंधेरे में क्या अंतर है। बहुत सोचने पर जाना कि कुछ अंतर नहीं है। जैसे अचानक किसी ने मुझे झकझोर दिया और मैं उठकर मोमबत्ती ढूँढने लगा। मोमबत्ती को जलाते ही घर में प्रकाश हो गया और मेरा भय जाता रहा। अब मैं जब किसी वस्तु या स्थिति से डरने लगता हूँ तो स्वयं को समझाता हूँ। कुछ समय बाद में सहज महसूस करने लगता हूँ। कवि और मेरे मन की स्थिति बहुत अलग है। कवि का भय अपनी प्रेमिका के अतिशय प्रेम से उपजा है। उसे वह प्रेम पसंद भी है और वह उससे परेशान भी हो जाता है। मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं ऐसी स्थिति में नहीं होता हूँ। मैं केवल अंधेरे से डरता था। मुझे अंधेरा कभी पसंद नहीं आया। आज मेरा भय पूर्ण रूप से चला गया है। मैं कवि की तरह दुविधा में नहीं जा रहा हूँ।

(नोट: विद्यार्थी प्रयास करें कि इस प्रश्न में अपना अनुभव लिखे तभी इस प्रश्न का उत्तर पूर्ण हो पाएगा।)



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