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झाँसी की रानी

झाँसी की रानी

काव्यांश 1
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फ़िरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।

प्रसंग 1
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तिका वसंत भाग-1 में संकलित 'झाँसी की रानी' कविता से ली गई हैं। इसकी रचनाकार 'सुभद्रा कुमारी चौहान हैं।' इन पंक्तियों में कवयित्री ने 1857 में भारत की स्थिति को दर्शाया है। अंग्रेज़ों के अत्याचारों से तंग आकर पूरे भारत में सन् 1857 के विद्रोह ने जन्म ले लिया था। इसमें झाँसी की रानी ने अपनी वीरता से सबको चमत्कृत कर दिया।

व्याख्या 1
यहाँ सुभद्रा जी ने अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के कारण को दर्शाया है। 1857 में अंग्रेज़ों के अत्याचारों की हद पार हो गई थी। अंग्रेज़ धीरे-धीरे भारत पर अपना कब्ज़ा कर रहे थे। उनके इस कृत्य से सभी राजा चौकन्ने हो गए थे। अंग्रेज़ों के प्रति राजवंशों के अन्दर क्रोध उत्पन्न हो गया था। अंग्रेज़ों का दमन करने के लिए सारी रियासतों के राजा एक होने लगे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो भारत देश में जवान व्यक्ति की भांति रक्त का संचार हो रहा है। अंग्रेज़ों के साथ रहते हुए राजाओं तथा जनता ने जाना था कि वे गुलाम बन चुके हैं। उन्हें आज़ादी का मूल्य अब पता चल रहा था। अब सबने मिलकर यह प्रण कर लिया था कि किसी भी तरह एक होकर अंग्रेज़ों को भारत से बाहर खदेड़ देंगे। अब सभी राजाओं ने अपनी तलवारों को म्यान से निकालकर युद्ध की घोषणा कर दी थी। यह समय था सन् अठारह सौ सत्तावन का। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेले और हरबोलों के मुँह से यही कहानी सुनी थी कि सन् अठारह सौ सत्तावन के युद्ध में जिसने स्त्री होते हुए भी पुरुषों जैसा शौर्य व वीरता दिखाई, वह झाँसी वाली रानी थी।

विषय-
1. भाषा सरल है।
2. काव्यांश की भाषा ओजपूर्ण है।
3. सन् सत्तावन में 'स' वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
4. गेयात्मक शैली में लिखा गया है।
5. भाषा प्रवाहमयी है।

काव्यांश 2
कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन 'छबीली' थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,
वीर शिवाजी की गाथाएँ
उसको याद ज़बानी थीं।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।

प्रसंग 2
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तिका वसंत भाग-1 में संकलित 'झाँसी की रानी' कविता से ली गई हैं। इसकी रचनाकार 'सुभद्रा कुमारी चौहान' जी हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री सुभद्रा जी झाँसी की रानी के बाल्यकाल का परिचय दे रही हैं।

व्याख्या 2
सुभद्रा जी कहती हैं कि लक्ष्मीबाई का जीवनकाल कानपुर के नाना के यहाँ बीता था। वह उसे अपनी बहन मानते थे। इन्होंने उनके प्यार का नाम 'छबीली' रखा हुआ था। वह अपने पिता की एकमात्र संतान थीं। उनका नाम मनु था। विवाह के पश्चात उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। उनकी शिक्षा-दीक्षा व खेल सभी नाना के साथ हुए थे। मनु अन्य लड़कियों की भांति गुड्डे-गुडि़यों को नहीं अपितु बरछी, ढाल, कृपाण, और कटारी को ही अपनी सखी मानती थी। वे वीर शिवाजी से बहुत अधिक प्रेरित थीं। उनकी गाथाएँ उन्हें मुँह ज़बानी याद थीं। यह हमारी लक्ष्मीबाई थीं, जो युद्ध के मैदान में मर्दों के समान लड़ी थीं।

विषय-
1. भाषा सरल है।
2. काव्यांश की भाषा ओजपूर्ण है।
3. गेयात्मक शैली में लिखा गया है।
5. भाषा प्रवाहमयी है।

काव्यांश 3
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।

प्रसंग 3
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तिका वसंत भाग-1 में संकलित 'झाँसी की रानी' कविता से ली गई हैं। इसकी रचनाकार 'सुभद्रा कुमारी चौहान' जी हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री झाँसी की रानी की रूचियों का वर्णन कर रही हैं।

व्याख्या 3
सुभद्रा जी के अनु…

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