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सार लेखन

सार लेखन

किसी विषय पर बहुत कम शब्दों में लिखने को सार लेखन कहते हैं। अर्थात किसी विषय पर कम-से-कम शब्दों में अपनी बात व्यक्त करना सार लेखन कहलाता है। आज के समय में लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वह किसी विषय पर विस्तारपूर्वक पढ़ें। अतः सार के माध्यम से संक्षिप्त रूप में अपनी बात व्यक्त करना ही सरल माना जाता है। इसके अंदर अनुच्छेद तथा लेख के अंदर आने वाली अनावश्यक बातों, उदाहरणों आदि को हटा दिया जाता है। सार लेखन बच्चों की लेखन क्षमता को बढ़ाता है, उनके विचारों में स्पष्टता लाता है तथा उनके विचारों को विकसित करता है। अतः यह विधा विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक है। इससे उनका लेखन प्रभावशाली तथा स्पष्ट बनता है। सार लेखन के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।–
 

1. सार लेखन हमेशा विषय के मूल भावों पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि अनुच्छेद तथा लेख को ध्यानपूर्वक तब तक पढ़ें, जब तक उसका मूल भाव आपको स्पष्ट न हो जाए।

2. अनुच्छेद या लेख में मुख्य बातों तथा विचारों को पेंसिल की सहायता से रेखांकित करके रख लें। इससे पाठ के मूल भाव को समझने में सहायता मिलती है।

3. सार लेखन लिखते समय क्रमबद्धता का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

4. सार पूरे अनुच्छेद तथा लेख का एक तिहाई भाग होना चाहिए। यदि अनुच्छेद या लेख 300 शब्दों का है, तो सार लेखन 100 शब्दों का होना चाहिए।

5. इसमें अपनी ओर से बातें या उदाहरणों को डालना श्रेयकर नहीं होता। इसके अतिरिक्त लेख में आए ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचें, जो सौंदर्य बढ़ाने की दृष्टि से लिखे गए हों। अर्थात मुहावरे, कहावते आदि नहीं लिखने चाहिए।

6. सार इस प्रकार लिखा जाना चाहिए कि उसे पढ़ते ही सारा विषय स्पष्ट हो …

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