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Alka Varghese asked a question
Subject: Hindi, asked on on 24/1/11
Abhishek Lekhi asked a question
Subject: Hindi, asked on on 16/1/12
V Shambhavi asked a question
Subject: Hindi, asked on on 27/10/13
Aryan Kumar asked a question
Subject: Hindi, asked on on 22/11/16
Aryan Kumar asked a question
Subject: Hindi, asked on on 21/11/16
Ankita Sirola asked a question
Subject: Hindi, asked on on 27/10/11
Yash Khandelwal asked a question
Subject: Hindi, asked on on 29/1/17
​प्र० )  निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रशनों के उत्तर दे -
कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में रह के कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो !
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ,
संभालो कि सुयोग न जाए अंचला
कब व्यर्थ हुआ सदपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेशवर है अवलंबन को ,
नर हो , नतिराश करो मन को ||
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्व कहाँ?
तुम स्वत्व-सुधा-रस पान करो
उठ के अमरत्व विधान करों
दव-रूप रहो भव-कानन को ,
नर हो न निराश करो मन को |
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
‘ हम भी कुछ हैं ‘ - यह ध्यान रहे
सब जाए अभी ,  पर मान रहे
मरणोत्तर गुजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को ,
नर हो न निराश करो मन को |
  1. तन को बनाए रखने का क्या उपाय है ?
  2. कवि के अनुसार ’ नर हो न निराश करो मन को’ का अर्थ है ?
  3. ईश्वर किसका साथ देता है ?
  4. आशय लिखिए – ‘ दव-रूप रहो भव-कानन को ’ |
  5. कवि किस बात का ज्ञान और किस बात का ध्यान का रखने की बात कर रहे हैं ?
  6. कवि इस पद्‌यांश मे किस बात का संदेश दे रहे हैं  ? 
  7. उचित शीर्षक दीजिए।

 

Sunanda & 1 other asked a question
Subject: Hindi, asked on on 29/1/15
Shiv Kumar asked a question
Subject: Hindi, asked on on 26/5/13
Naman Sonkhiya asked a question
Subject: Hindi, asked on on 26/8/12
Aditi Verma asked a question
Subject: Hindi, asked on on 9/6/17
Plz answer 1,2,3,4 question plz do answer
 
पद्यांश
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
संध्या से पा कर रुचिर रंग
करती सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु दल के समान
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
 
  1. कविता में जल कन्याएँ किन्हें व क्यों कहा गया?
  2. सुबह की लहरों का सागर की लहरों पर क्या प्रभाव पढ़ता है?
  3. सागर की लहरे कब चंचल, कब अधीर और कब रंग बिरंगी बन जाती हें?
  4. `हैं एक सूत्र में बंधे प्राण` का क्या अर्थ है? 
Ayush asked a question
Subject: Hindi, asked on on 7/6/17
3 question
 
काव्यांश
किस भांति जीना चाहिए किस भांति मरना चाहिए,
सो सब हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए।
पद-चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए,
निज पूर्व गौरव-दीप को बुझने न देना चाहिए।
आओ मिले सब देश-बांधव हार बनकर देश के,
साधक बने सब प्रेम से सुख-शांतिमय उद्देश्य के। क्या
क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो?
बनती नही क्या एक माला विविध सुमनो की कहो।
प्राचीन हो कि नवीन, छोड़ो रूढ़ियों जो हो बुरी
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस की-सी चातुरी।
मुख से न होकर चित से देशानुरागी हो सदा ।

क. हमें पूर्वजों से क्या-क्या सीखना चाहिए ?
ख. विविध सुमनों की एक माला के माध्यम से कवि क्या समझाना चाहता है ?
ग कवि हंस के उदाहरण के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
घ. मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा- भाव स्पष्ट कीजिए।
Rita asked a question
Subject: Hindi, asked on on 16/1/17
Shashank asked a question
Subject: Hindi, asked on on 17/3/19
Tannu Sehrawat asked a question
Subject: Hindi, asked on on 22/5/18
Now please send quickly
 
बिन बैसाखी अपनी शर्तों पर, मैं मदमस्त चला।
सब्जबाग को दिखा-दिखा
दुनिया रह- रहे मुस्काई।
कंचन और कामिनी ने भी
अपनी छटा दिखाई।
सतरंगे जग के सांचे में, मैं ना कभी ढला।
चिंगारी पर चलते-चलते
रुका-रुका ना पल-छिन।
गिरे हुए को रहा उठाता
गले लगाता अनुदिन।
हलाहल पीते पीते ही मैं जीवन भर चला।
कितने बड़े-बड़े द्रुत चलकर
शैल-शिखर श्रुंगो पर।
कितने अपनी लाश लिए
फिरते अपने कंधों पर।
सबकी अपनी अलग नियति है, है जीने की कला।
आंधी से जूझा करना ही बस आता है मुझको।
पीड़ाओं के संग-संग जीना
आता है बस मुझको।
मैं तटस्थ, जो भी जग समझे पहले बुरा भला।
क-जग का सतरंगा सांचा किसे कहा गया है और कवि उसमें क्यों नहीं ढल सका?
ख-कंधों पर अपनी लाश लिए फिरने का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
ग-कवि मानता है कि हरेक का स्वभाव अलग-अलग होता है कैसे?
घ-कवि ने कैसा जीवन बिताया है?
च-जग के भला-बुरा कहने पर भी कवि क्या कहते रहना चाहता है?
Alka Varghese asked a question
Subject: Hindi, asked on on 24/1/11
Reena Mukherji asked a question
Subject: Hindi, asked on on 12/7/13
Ujjawal Gupta asked a question
Subject: Hindi, asked on on 14/1/18
Please give the answers.

खंड क 

1-  निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही उत्तर लिखिए- 

किसी प्रसिद्ध कवि एवं नाटककार का कथन है- “समय को मैंने नष्ट किया, अब मुझे नष्ट कर रहा है।” मनुष्य का जीवन अमूल्य है, जो संसार में विशिष्ट स्थान रखता है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। प्रकृति के समस्त कार्य नियत समय पर होते हैं। समय की गति बड़ी तीव्र होती है। जो उससे पिछड़ जाता है वह सदैव पछताता रहता है।

अत: आवश्यकता है समय के सदुपयोग की।  समय वह धन है जिस का सदुपयोग ना करने से वह व्यर्थ चला जाता है। हमें समय का महत्व तक ज्ञात होता है जब 2 मिनट विलंब के कारण गाड़ी छूट जाती है। हमारे देश में समय का जीवन में वही व्यक्ति सफल हो पाते हैं जो समय का पालन करते हैं। हमारे देश में समय का दुरुपयोग बहुत होता है। बेकार की बातों में व्यर्थ समय गंवाया जाता है।
मनोरंजन के नाम पर भी बहुत समय गंवाया जाता है। बहुत से व्यक्ति समय गांव आने में ही आनंद का अनुभव करते हैं यह प्रवृत्ति हानिकारक है।  समय को खोकर कोई व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। जूलियस सीजर के सभा में 5 मिनट देर से पहुंचने के कारण नेपोलियन को नेल्सन से पराजित होना पड़ा। समय किसी की बाट नहीं देखता।
 प्रश्न
1- `समय को मैंने नष्ट कि आप समय मुझे नष्ट कर रहा है`- कथन का क्या तात्पर्य है?
2-  समय पहचान स्पष्ट करें। इसका क्या महत्व है?
3-  समय और धन में क्या संबंध है? वर्णन करें।
4-  नेपोलियन क्यों हार गया?
5-  गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

2-  निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर लिखें-
 ऋषि मुनियों साधु-संतों को
 नम,  उन्हें मेरा अभिनंदन
 जिनके तप से पूत हुई है,  भारत देश की स्वर्णिम माटी
 जिनके श्रम से चली आ रही,   युग युग से अविरल परिपाटी
 जिनके संयम से शोभित है,  जन जन के  माथे पर चंदन
कठिन आत्ममंथन के हित जो असिधारा पर चलते हैं
 घर प्रकाश हित पिघल पिघल कर मोम दीपसा जलते हैं
 जिन के उपदेशों को सुनकर संवर जाए जन जन का जीवन
 सत्य अहिंसा जिनके भूषण
 करुणा में है जिनकी वाणी
 जिन के चरणों से है पावन
 भारत की यह अमिट कहानी
 उनके ही आशीष शुभेच्छा पाने को करता पद वंदन

 प्रश्न
 1- पूत शब्द  का अर्थ स्पष्ट  कीजिए।
 2- `आत्ममंथन के हित असिधारा पर जो चलते हैं` पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
3-  जन जन का जीवन कैसे संवर सकता है?
4-  पद वंदन कौन करना चाहता है?
 5- `पर  प्रकाश हित पिघल पिघल कर मोम दीप सा जलते हैं` पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
Sushmita Debnath asked a question
Subject: Hindi, asked on on 16/4/15
Naman Sonkhiya asked a question
Subject: Hindi, asked on on 26/8/12
Himanshu Sharma asked a question
Subject: Hindi, asked on on 14/4/18
Pls ans Q. 1
 
प्र.2 निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
यह संतोष और गर्व की बात है कि देश वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में आशातीत प्रगति कर रहा है । विश्व के समृद्ध अर्थव्यवस्था वाले देशों से टक्कर ले रहा है और उनसे आगे निकल जाना चाहता है। किंतु इस प्रगति के उजले पहलू के साथ धुंधला पहलू भी है, जिससे हम छुटकारा चाहते हैं । वह है नैतिकता का पहलू । यदि हमारे हृदय में सत्य, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और मानवीय भावनाएँ नहीं हैं, तो सारी प्रगति निरर्थक होगी । आज यह आम धारणा है कि बिना हथेली गर्म किए साधारण-सा काम भी नहीं हो सकता । भ्रष्ट जनसेवकों में अपना घर भरने की होड़ लगी है। उन्हें न समाज की चिंता है, न देश की । समाचार-पत्रों में अब ये रोजमर्रा की घटनाएँ हो गई हैं। लोग मान बैठे हैं कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है, जब कि यह सच नहीं है । नैतिकता मरी नहीं है, पर प्रचार अनैतिकता का हो रहा है । लोगों में यह धारणा घर करती जा रही है कि जब बड़े लोग ही ऐसा कर रहे हैं तो हम क्या करें ? सबसे पहले तो इस सोच से मुक्ति पाना ज़रूरी है, और उसके बाद यह संकल्प कि भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाएँगे । 
 
1- नैतिक चरित्र से लेखक का क्या आशय है ?
2- देश की प्रगति कब निरर्थक हो सकती है ? 
3- समाज अनैतिक पहलू से कैसे मुक्ति पा सकता है ?
4- गद्यांश में प्रयुक्त किसी मुहावरे का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
5- निम्नलिखित शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए - नैतिकता, ईमानदारी  
Kaviya asked a question
Subject: Hindi, asked on on 13/8/16
Khush asked a question
Subject: Hindi, asked on on 3/6/17
Mohd. Zeeshan asked a question
Subject: Hindi, asked on on 29/1/14
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