buraai par achhai ki jeet par 200 shabado ka ek anuchhed

'अच्छाई बुराई को बदल सकती है।' यह कथन सदियों से लोगों द्वारा कहा आ रहा है। लोगों का मानना है कि अच्छाई में इतना बल होता है कि वह बुराई को समाप्त कर अच्छाई को पुनः स्थापित कर देती है। इस कथन को  जानने से पहले यह आवश्यक है कि हम स्वयं समझे अच्छाई क्या होती है। अच्छाई को नापा तोला नहीं जा सकता है। मनुष्य के कार्य यह निर्धारित करते हैं कि हम अच्छाई कर रहे हैं या बुराई। जब हम बिना किसी स्वार्थ भावना से किसी की सहायता करते है, पराए लोगों के साथ नम्रता व आदर से बात करते हैं, दूसरों के सुख-दुख में साथ देते हैं, ईमानदारी से कार्य करते हैं, इत्यादि बातें अच्छाई की श्रेणी में आती है। ऐसे लोगों को समाज में  विशेष आदर मिलता है। अब बात आती है कि बुराई की। जब हम किसी को धोखा देते हैं, अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, लोगों को अकारण मारते हैं, सबका अनादर करते हैं, किसी की हत्या करते हैं इत्यादि बातें बुराई कही जाती है। बुराई से युक्त लोगों को समाज में ही नहीं संसार में भी हेय दृष्टि से देखा जाता है.

इस संसार में अच्छाई को सराहा जाता है और बुराई को नकारा जाता है। अच्छाई के पास इतना समार्थ्य होता है कि वह बुराई को जीत सके। बुराई में बल अवश्य हो सकता है परन्तु धैर्य की कमी होती है। वह अच्छाई को कुछ समय के लिए दबा सकती है परन्तु  उसे समाप्त नहीं कर सकती है। प्राचीनकाल से ही इतने साक्ष्य उपलब्ध हैं जो अच्छाई की विशालता और बल को  उजागर करते हैं। रामायण इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। रावण चारों वेदों का ज्ञाता और परम बलशाली व्यक्ति था। उसने अपने पराक्रम और बल से स्वर्ग के सभी देवताओं को अपने पास बंदी बनाकर रख लिया था। उसे धरती, आकाश तथा पाताल को अपने अधीन कर लिया था। उसका मानना था कि उसके साम्राज्य को कोई समाप्त नहीं कर सकता है। देवता से लेकर मानव तक उससे घृणा करते थे। परन्तु राम ने अपनी वानर सेना के साथ रावण के बुराई के साम्राज्य को समाप्त कर दिया। राम ने अपने शील, गुण, शौर्य और सदाचार से अपनी अच्छाई का लौह मनवाया और इस संसार में अमर हो गए।

परन्तु प्रश्न उठता है कि क्या अच्छाई बुराई को बदल सकती है? तो इसका उत्तर हाँ। अंगुलीमाल डाकू इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अंगुलीमाल अपने समय का सबसे भयंकर डाकू था। उसने 999 हत्याएँ कि हुई थी। जिस जंगल मं वह रहता था। वहाँ जाने से सब डरा करते थे। यहाँ तक कि उसके अपने माता-पिता भी उससे मिलने से डरते थे। उसने जितने लोगों को मारा हुआ था। उनकी अंगुली काट कर वह अपनी माला में पिरो लेता था। उसकी बुराई का सुनकर बुद्ध जी ने वहाँ जाने का निश्चय किया। वह अकेले ही उस जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में उनका सामना अंगुलीमाल डाकू से हुआ। उसने बुद्ध जी को विभिन्न प्रकार से डराने का प्रयास किया। उसने बुद्ध बहुत अपशब्द कहे। परन्तु बुद्ध की और से उसे विनम्रता, प्रेम, स्नेह ही पाया। बुद्ध के गुणों से प्रभावित होकर वह हार मान बैठा और उनका शिष्य बन गया। इससे पता चलता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर हो परन्तु जब अच्छाई अपनी धैर्य की ताकत लेकर आती है, तो बुराई बदल जाती है।

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