essay on corruption

नमस्कार मित्र,

भ्रष्टाचार वह बीमारी है, जो देश और समाज को धीरे-धीरे खोखला बना देती है। भ्रष्टाचार शब्द का जन्म 'भ्रष्ट' और 'आचार' शब्द से मिलकर हुआ है, जिसका अर्थ है दूषित या विकृत व्यवहार (आचार) करने वाले अर्थात ऐसे लोग जो दूषित व्यवहार करते हैं। ऐसे लोग समाज और देश को दीमक की तरह चाट रहें हैं।
 

हमारे देश में बहुत-सी समस्याएँ मुँह फाड़े खड़ी हैं परन्तु भ्रष्टाचार इन्हीं सभी समस्याओं में सबसे आगे खड़ी है। भ्रष्टाचार विरोधी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार इस बार सूची में भारत का 84 वां स्थान है। यह बहुत शर्म की बात है कि भारत भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल है। यह चिंताजनक बात है कि भारत का नाम इस सूची में है। यह तो सभी जानते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार हो रहा है। परन्तु उसका स्तर इतना बढ़ गया है कि उसकी आँच अन्य देशों तक पहुँचने लगी है।
 

भारत के अंदर भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है। किसी भी क्षेत्र में चले जाएं भ्रष्टाचार का बोल-बाला दिखाई दे जाएगा। भारत के सरकारी व गैर-सरकारी विभाग इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हैं। आप यहाँ से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है। मंत्री से लेकर संतरी तक को आपको अपनी फाइल बढ़वाने के लिए पैसे का उपहार चढ़ाना ही पड़ेगा। स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है। नामी स्कूलों में दाखिला कराना हो, तो डोनेशन के नाम पर मोटी रकम मांगी जाती है। बैंक जो की हर देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ हैं, वे भी भ्रष्टाचार के इस रोग से पीड़ित हैं। आप किसी प्रकार के लोन के लिए आवेदन करें पर बिना किसी परेशानी के फाइल निकल जाए, यह संभव नहीं हो सकता। देश की आंतरिक सुरक्षा का भार हमारे पुलिस विभाग पर होता है परन्तु आए दिन ये समाचार आते-रहते हैं कि आमुक पुलिस अफ़सर ने रिश्वत लेकर एक गुनाहगार को छोड़ दिया। भारत को यह भ्रष्टाचार खोखला बना रहा है। 
 

समाज में फन फैला रहे इस विकराल नाग को हमें मारना होगा। सबसे पहले आवश्यक है, प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाना। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने को इस भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा। यही नहीं शिक्षा में कुछ ऐसा अनिवार्य अंश जोड़ा जाए, जिससे हमारी नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति तथा नैतिक प्रतिमानों को पहचाने। वे इसे संस्कार स्वरुप लेकर स्वयं के स्वरूप को विकसित करें। हमें न्यायिक व्यवस्था को कठोर बनाना होगा तथा सामान्य जन को आवश्यक सुविधाएँ भी उपलब्ध करानी होगी। इसी आधार पर हमें आगे बढ़ना होगा तभी इस स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।
 

समाज में यदि एक भ्रष्ट व्यक्ति विद्यमान है, तो हमें भी उसके साथ भ्रष्ट होने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम भी स्थिति से विवश होकर स्वयं भी भ्रष्ट हो जाते हैं, तो हम ऐसी श्रृंखला की रचना करते हैं, जिसका कभी अंत नहीं होगा। यह श्रृंखला दिन-भर-दिन बढ़ती ही चली जाएगी। इस भ्रष्टाचार की समस्या को हमें जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। नहीं तो यह ऐसा पेड़ बनकर उभरेगा जिसकी छाया हमारे साथ हमारे देश को भी निगल जाएगी। हम सब मिलकर यह प्रण करें की भ्रष्टाचार को मिटा कर रहेंगे, न स्वयं रिश्वत लेगें, न दूसरों को रिश्वत लेने देगें।



 

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बहुत बहुत धन्यवाद!

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