अनुच्छेद on " यदि मैं शिक्षा मंत्री होती " ??!!
मैं सदैव से हमारे देश की शिक्षा प्रणाली से अप्रसन्न रहा हूँ। भारत की आबादी के अनुरूप उतने विद्यालय नहीं है। और जो विद्यालय हैं भी तो वहाँ शिक्षा का स्तर बहुत ही निम्न है। सरकारी विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा के प्रति लोगों में अधिक असन्तुष्टी देखी जाती है। लोग अपने बच्चों को गैर सरकारी विद्यालयों में पढ़ाते हैं। आज के समय में सरकारी विद्यालयों में गरीब और मध्यम परिवारों के बच्चे ही आते हैं। गैर सरकारी विद्यालय लोगों की इस कमज़ोरी का नाजायज फायदा उठाते हैं। फीस के नाम पर वह ढेरों रुपये वसूलते हैं। माता-पिता पर जहाँ पैसों का अतिरिक्त दबाव बनाता है, वहीँ बच्चों पर किताबों का दबाव बना दिया जाता है। यदि मैं शिक्षा मंत्री होता तो इन सभी बातों पर ठोस कदम उठाता। नए विद्यालयों का निर्माण करता, देश में शिक्षा प्रणाली के विषय पर व्यापक स्तर पर कार्य करता। सरकारी विद्यालयों की स्थिति पर सुधार करने के लिए विशेष ज़ोर लगाता ताकि अन्य परिवारों के बच्चे में इनकी शिक्षा प्रणाली पर प्रश्न चिह्न न लगा पाएँ। गैर सरकारी विद्यालयों की नकेल कसने के लिए ठोस नियम बनाता ताकि यह बच्चों तथा उनके परिवारों पर दबावा न बना पाएँ। शिक्षा सबका अधिकार है। हम बच्चों को शिक्षित इसलिए करना चाहते हैं ताकि वह देश की और अपना भविष्य उज्जवल बना पाएँ। संसार को समझे व अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो। परन्तु जो शिक्षा प्रणाली बच्चों को शिक्षा के स्थान पर तनाव प्रदान करें। उसका होना बेकार हैं। शिक्षा मंत्री बनकर मैं इन सभी बातों पर सबका ध्यान आकर्षित करवाता।