soordas ka jeevan parichaya dene ka prayas karein (along description is required)
मित्र हम आपको सूरदास के बारे में जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं। हमारे पास इनकी रूप-रेखा नहीं है। अतः हम वह नहीं दे रहे हैं।
सूरदास भक्तिकाल में सगुण भक्ति धारा की एक शाखा कृष्ण भक्ति काव्यधार के प्रमुख कवि हैं। ये भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। इन्होंने सारी उम्र कृष्ण की उपासना में बिता दी थी। इसलिए यह कृष्णभक्ति शाखा के कवि माने जाते हैं। कहा जाता है सूरदास जन्म से ही अंधे थे। इनका जन्म 1478 से 1583 के बीच का समय माना गया है। इनका जन्म सीही ग्राम में हुआ था। इन्होंने ब्रजभाषा में बहुत ही सुन्दर पदों की रचना की। यह पद कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत थे। इन्होंने अंधे होते हुए भी कृष्ण के बाल्यरूप का बहुत सजीव व सुंदर चित्रण किया है। सूरसागर , सूरसारावली , साहित्य-लहरी इनके द्वारा रचित ग्रंथ है। इन ग्रंथों की भाषा ब्रज भाषा है। इनकी रचनाओं ने जन मानस के ह्दय पर ऐसी छाप छोड़ी है, जो आज भी दिखाई देती है। कृष्ण के बाल स्वरूप को जो सुंदर और सजीव चित्रण किया है वह बहुत कम ही देखने को मिलता है। ब्रज भाषा सरल व सरस है। पदों की भाषा इतनी मधुर और कोमल है कि सुनने वालों का ह्दय प्रसन्नचित्त हो जाता है। यही कारण है कि सगुण भक्ति के प्रमुख कवि कहे जाते हैं। अपनी भाषा की श्रेष्ठता और सजीव वर्णन के कारण इन्होंने सूर्य की उपाधी प्राप्त की है।
सूरदास भक्तिकाल में सगुण भक्ति धारा की एक शाखा कृष्ण भक्ति काव्यधार के प्रमुख कवि हैं। ये भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। इन्होंने सारी उम्र कृष्ण की उपासना में बिता दी थी। इसलिए यह कृष्णभक्ति शाखा के कवि माने जाते हैं। कहा जाता है सूरदास जन्म से ही अंधे थे। इनका जन्म 1478 से 1583 के बीच का समय माना गया है। इनका जन्म सीही ग्राम में हुआ था। इन्होंने ब्रजभाषा में बहुत ही सुन्दर पदों की रचना की। यह पद कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत थे। इन्होंने अंधे होते हुए भी कृष्ण के बाल्यरूप का बहुत सजीव व सुंदर चित्रण किया है। सूरसागर , सूरसारावली , साहित्य-लहरी इनके द्वारा रचित ग्रंथ है। इन ग्रंथों की भाषा ब्रज भाषा है। इनकी रचनाओं ने जन मानस के ह्दय पर ऐसी छाप छोड़ी है, जो आज भी दिखाई देती है। कृष्ण के बाल स्वरूप को जो सुंदर और सजीव चित्रण किया है वह बहुत कम ही देखने को मिलता है। ब्रज भाषा सरल व सरस है। पदों की भाषा इतनी मधुर और कोमल है कि सुनने वालों का ह्दय प्रसन्नचित्त हो जाता है। यही कारण है कि सगुण भक्ति के प्रमुख कवि कहे जाते हैं। अपनी भाषा की श्रेष्ठता और सजीव वर्णन के कारण इन्होंने सूर्य की उपाधी प्राप्त की है।