write a nibandh on :_
atma-nirbharta
मनुष्य के जीवन में आत्मनिर्भर होना परम आवश्यक है। आत्मनिर्भरता का अर्थ होता है, स्वयं पर निर्भर रहना अर्थात अपनी ज़रूरतों और सुख-सुविधाओं को स्वयं पूरा करना। आत्मनिर्भरता जहाँ उसे स्वाबलंबी बनाती है, वहीं उसमें आत्मविश्वास का सुख भी भरती है। आत्मनिर्भरता हर मनुष्य के लिए आवश्यक है।
दूसरों पर निर्भर व्यक्ति का जीवन व्यर्थ होता है और उसकी स्वयं की शक्ति, योग्यता और स्वाभिमान का ह्रास होता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सक्षम होता है। उसे जीवन में फैसले लेने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इसी कारण उसे अपना अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति को बल मिलता है। वह अपने साथ-साथ परिवार की भी देखभाल करता है। आत्मनिर्भरता उसमें कर्तव्य की भावना का विकास करती है। समाज में उसे इसी के कारण विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है।
'जीवन' संघर्षों, विषमताओं, कष्टों और सुखों के मिले-जुले ताने-बाने का नाम है। जीवन में संघर्ष उसे लड़ने की प्रेरणा देते हैं। विषमताएँ उसके अंदर सूझ-बूझ और समझदारी आदि गुणों को विकसित करती है। कष्ट उसे मानसिक तौर पर मज़बूत बनाते हैं और धैर्य को बढ़ाते हैं। सुख उसमें विश्राम, आत्मविश्वास, शान्ति आदि गुणों का विकास करते हैं। इन सब परिस्थितियों से गुजरते हुए मनुष्य स्वयं को तभी संभाल पाता है, जब वह आत्मनिर्भर होता है। आत्मनिर्भरता उसे दृढ़ सबल देती है। वह हर परिस्थिति में समान भाव से रहते हुए स्वयं को निकाल पाता है। परन्तु यदि वह आत्मनिर्भर नहीं है, तो सुख भी उसके लिए दुख से कम नहीं होता।
जो व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता, उसे सदा दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका आत्मसम्मान दूसरों के द्वारा सदैव खण्डित किया जाता है। समाज में उसे लोगों द्वारा हीन-दृष्टि से देखा जाता है। वह सबके सम्मुख महत्वहीन हो जाता है। किसी विद्वान ने सही कहा है, ''मानव का महत्व आश्रित बनने में नहीं, आश्रय देने में है।'' आश्रय देने में जो सुख है, वह आश्रित होने में कहाँ है? आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने साथ-साथ देश, समाज, परिवार सबका कल्याण करते हैं। यदि समाज में आत्मनिर्भर व्यक्तियों की संख्या अधिक है, तो समझ लीजिए कि देश, समाज और परिवारों की उन्नति और प्रगति हो रही है। इसके विपरीत यदि देश में आत्मनिर्भर व्यक्तियों की कमी है, तो यह समझ लीजिए कि देश, समाज और परिवारों की स्थिति कितनी दयनीय है।
आत्मनिर्भरता मनुष्य के अंदर अन्यास ही विभिन्न शक्तियों का संचार कर देती है। वह स्वावलंबी, आत्मविश्वासी, समझदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति बन जाता है। ये उसके विकास के लिए आवश्यक बिन्दु हैं। यह ज़रूरी नहीं की आत्मनिर्भर बनने के लिए मनुष्य का शिक्षित होना आवश्यक है। क्योंकि ऐसे बहुत से युवा हैं, जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते परन्तु व्यापार में उन्हें अपार सफलता मिली होती है। वह भी आत्मनिर्भर होते हैं। शिक्षा मनुष्य के जीवन को नई और विकसित विचारधारा से सोचने का अवसर प्रदान करती है। देश और अपने आस-पास को समझने में योगदान देती है। आत्मनिर्भर बनाने में भी उसकी मुख्य भूमिका होती है। अत: हमें शिक्षा के महत्व को नकार नहीं सकते। परन्तु अशिक्षित व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता यह भी सत्य नहीं है। छोटे से छोटा काम करने वाला व्यक्ति भी आत्मनिर्भर होता है। आत्मनिर्भरता मनुष्य के जीवन का ऐसा केंद्र-बिन्दु है, जहाँ से उसके सभी स्वप्न साकार होते हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे कदम उठाए, जिससे देश का प्रत्येक व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सके। हमें भी चाहिए कि स्वयं भी आत्मनिर्भर हों और औरों को भी आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें। यही हमारी सच्ची जीत है।