Subject: Hindi, asked on 12/1/16

 Dahej Prathaदहेज.प्रथा का उदभव कब और कहां हुआ यह कह पाना असंभव है। विश्व के विभिन्न सभ्यताओं में दहेज लेने और देने के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं। इससे यह तो स्पष्ट होता है कि दहेज का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। अब हम यह जान लें कि दहेज कि वास्तविक परिभाषा क्या है दहेज के अंतर्गत वे सारे सामग्रियां अथवा रकम आते हैं जो वर पक्ष को वधू पक्ष के माध्यम से विवाह के प्रक्रिया के दौरान अथवा विवाह के पश्चात प्राप्त होते हैं। इन वस्तुओं की मांग या तो वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से की जाती है अथवा वे स्वेच्छा से इसे प्रदान करते हैं।हालांकि दहेज का पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में बोलबाला है। अपितु भारत में यह तो एक भयंकर बीमारी के रूप में मौजूद है। देश का शायद ही ऐसा कोर्इ भाग बचा हो जहां के लोग इस बीमारी से ग्रसित न हों। आए दिन दहेज लेने.देने के सैकड़ों मामले दिखार्इ देते हैं। जिन व्यकितयों की बेटियां होती हैंए वे अल्प काल से ही दहेज के लिए रकम संग्रह में लीन हो जाते हैं। इस वजह से समाज का एक बड़ा तबका बेटियों को मनहूस समझता है और प्रतिवर्श देश में ही लाखों बेटियों को लिंग परीक्षण कर समय से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है। विवाह के पश्चात लड़कियों को दहेज के लिए प्रताडि़त करने के सैकड़ों मामले हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही है। हालांकि सरकार द्वारा दहेज विरोधी अनेक सख्त कानून और सजा का प्रावधान हैए अपितु दहेज के मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। देश भर में दहेज के लोभी राक्षसों द्वारा जलाया जा रहा हैए मारा जा रहा है और प्रताडि़त किया जा रहा है। दहेज लोभी लोग मानवीयता भूलकर अमानवीय कृत्यों से परहेज नहीं करते।महंगार्इ: एक समस्यामहंगार्इ: एक समस्या    महंगार्इ आज हर किसी के मुख पर चर्चा का विषय बन चुका है। विष्व का हर देष इस से ग्रसित होता जा रहा है। भारत जैसे विकासषील देषों के लिए तो यह चिंता का विषय बनता जा रहा है।    महंगार्इ ने आम जनता का जीवन अत्यन्त दुष्कर कर दिया है। आज दैनिक उपभोग की वस्तुएं हों अथवा रिहायशी वस्तुएं, हर वस्तु की कीमत दिन-व-दिन बढ़ती और पहुंच से दूर होती जा रही है। महंगार्इ के कारण हम अपने दैनिक उपभोग की वस्तुओं में कटौती करने को विवष होते जा रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक जहां साग-सबिजयां कुछ रूपयों में हो जाती थीं, आज उसके लिए लोगों को सैकड़ों रूपये चुकाने पड़ रहे हैं।    वेतनभोगियों के लिए तो यह अभिषाप की तरह है। महंगार्इ की तुलना में वेतन नहीं बढ़ने से वेतन और खर्च में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सरकार को हस्तक्षेप करके कीमतों पर नियंत्रण रखने के दूरगामी उपाय करना चाहिए। सरकार को महंगार्इ के उन्मूलन हेतू गहन अध्ययन करना चाहिए और ऐसे उपाय करना चाहिए ताकि महंगार्इ डायन किसी को न सताए।  महंगाई  के लिए तेजी से बढ़ती जनसंख्या, सरकार द्वारा लगाए जाने वाले अनावष्यक कर तथा मांग की तुलना में आपूर्ति की कमी है। बेहतर बाजार व्यवस्था से कुछ हद तक मुकित मिलेगी। पेटोलियम उत्पाद, माल भाड़ा, बिजली आदि जैसीे मूलभूत विषयों पर जब-तब बढ़ोतरी नहीं करना चाहिए। इन में वृद्धि का विपरित प्रभाव हर वस्तु के मूल्य पर पड़ता है। सरकार की चपलता ही महंगार्इ को नियंत्रित कर सकती है।              मानव जगत में उत्साह, उमंगों एवं सपनों का सर्वोकृष्ट जीवित पुंज 'बालक' को माना गया है | बच्चे किसी भी राष्ट्र के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं | वे देश के भावी कर्णधार एवं प्रगति का आइना हैं | उनका चमकता या मुरझाया हुआ चेहरा इस बात का प्रतीक है की वह देश कितना खुशहाल , संपन्न या विपन्न है | ये राष्ट्र की धरोहर होते हैं जिनकी समुचित देखभाल एवं विकास पर ही किसी भी राष्ट्र की प्रगति निर्भर करती है | वे सभ्यता एवं भविष्य के आधार हैं और निरंतर पुनजीर्वन का स्त्रोत भी, इन्ही के कन्धों पर मानवता के उज्जवल भविष्य की आधार-शिला रखी जा सकती है,किन्तु विडम्बना इस बात की हे कि इन बच्चों कि एक बड़ी संख्या ऐसे बच्चों कि है, जिनका जीवन संघर्षों एवं असामान्य परिस्थिति में बीतता है | प्रश्न ये है कि जिन बच्चों का बचपन ही समस्याओं से घिरा हुआ है, उन बच्चों का भविष्य क्या होगा? क्या ये बच्चे बड़े होकर पढेंगे या बाल श्रमिक बनेंगे और वे समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान किस प्रकार से दे सकेंगे ?आज भी परिवार की आर्थिक विवशताओं के कारण हजारों बच्चे स्कूल की चौखट भी पार नहीं कर पाते और अनेकानेक बालकों को इन्हीं बाध्यताओं के कारण पढाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है और बाल श्रमिक आजीविका, शिक्षा, प्रशिक्षण और कार्यरत कौशल से वंचित रह जाते हैं | परिणामतः न उनका मानसिक विकास हो पता है और न ही बौद्धिक विकास संभव है |    

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