खेल का हमारे जीवन में महत्व

 

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मानव जीवन मे खेलकूद का महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन तभी पूर्ण होता है, जब उसका सर्वांगीण विकास हो। शिक्षा से बुद्धि तथा आत्मा का विकास होता है, तो खेलों से शारीरिक विकास। कालिदास ने कहा है "शरीरमाघं खलुधर्म साधनम" अर्थात सब प्रकार के कर्तव्य-पालन का प्रथम साधन शरीर ही है। खेलों से शरीर स्वस्थ, सुडौल और सुन्दर बनता है।
स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति ही भली प्रकार अपने मस्तिष्क का विकास कर सकता है। खेलकूद से मन को आनन्द मिलता है, बुद्धि को तीव्रता प्राप्त होती है और शरीर को नवचेतना मिलती है।
खेल कूद दो प्रकार के होते हैं : 1. देशी, 2. विदेशी। स्थान की दृष्टि से भी खेलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है : 1. घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर) और 2. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर)। इन सबका अपना-अपना स्थान है। खेलकूद में रूचि की भी बात है–किसी को खो-खो पंसद है, तो किसी को टेनिस। स्थान और समय भी खेलकूद का निर्णय करने में महत्वपूर्ण भाग लेते हैं।
देशी खेलों में कबड्डी और खो-खो बहुत प्रसिद्ध है और ये बहुत मनोरंजक खेल भी हैं। उस समय खिलाड़ियों का ही नहीं, दर्शकों का भी उत्साह देखते ही बनता है।
विदेशी खेल यद्यपि बहुत आकर्षक तथा मनोरंजक होते हैं, तथापि वे बहुत अधिक व्यय-साध्य होते हैं। यूरोप के देशों-अमेरिका में तथा रूस में खेलों पर बहुत ध्यान दिया जाता है। अब एशिया में भी नवजागरण के साथ खेलों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। सेना में, पुलिस में, रेलवे में तथा अन्यान्य कार्यालयों में उन प्रत्याशियों को वरीयता दी जाती है। यूनान में कई शताब्दियों पहले ओलम्पिक खेलों का सूत्रपात हुआ था। ये बीच में बंद हो गए थे, परन्तु एक फ्रांसीसी खिलाड़ी के प्रयत्न से दोबारा शुरू हुए। ओलम्पिक में जीतने वाले खिलाड़ियों को इज़्ज़त, धन  प्राप्त होता है। खेलों से न केवल शरीर स्वस्थ होता है, अपितु इससे सहयोग की भावना का भी विकास होता है।
 
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

 

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