1." NETAJI KA CHASMAH" KAHANI CAPTAIN CHASMAHWALE KE MADHYAM SE DESH KE KARORO NAGRIKO KE YOGDAN KO REKHANKIT KARTI HAI-PROVE IT?

2.PAANWALE KE LIYE-- -------DRAVIT KARNE WALI-YEH LINE KIS BAAT KI ORR SANKET KARTI HAI?ISSE DESH KI VARTAMAN STITHI( PRSENT SOTUATION) KISS PRAKAR UBHAR KAR AII HAI?

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१. देश को आज़ादी मिली तो हम इसका श्रेय किसी एक व्यक्ति विशेष या पार्टी को नहीं दे सकते हैं। कारण यह है कि वे सभी नेता या पार्टी  तभी अपना काम कर पाए, जब देश के हर छोटे-बड़े व्यक्ति ने उनका साथ दिया था। यह कहना कि देश में देश से प्रेम करने वाले नहीं बचे हैं या देशभक्त नहीं है उचित नहीं कहा जा सकता। कैप्टन देश का एक आम नागरिक था। उसने कभी किसी आदोलन या जंग में भाग नहीं लिया था, जिससे उसे देशभक्त कहा जाए । परन्तु वे उन सभी आदोलनकारियों और सिपाहियों के समान ही आदरणीय था। उसे अपने देश से बहुत प्रेम था।  क्योंकि वह देश में रहकर देश के प्रति अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा के साथ पालन कर रहा था। वह नेताजी की चश्मा विहिन मूर्ति का सम्मान बचाए रखने के लिए अपने चश्मों से एक फ्रेम लगा जाता । उसके इस व्यवहार के कारण लोग उसका मज़ाक उठाते थे। इस कार्य से उसे समाज में पूजा नहीं जाता था, अपितु उसका उपहास उड़ाया जाता था। ऐसी स्थिति में भी वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटा और मरते दम तक नेताजी का सम्मान बचाता रहा।  भारत में आज भी करोड़ों ऐसे लोग हैं, जो अपने देश के सम्मान के लिए कार्य करते हैं, परन्तु उनके कार्यों के लिए उन्हें सराहा नहीं जाता है। परन्तु वह फिर भी बिना किसी कठिनाई के अपना कार्य करते रहते हैं। लेखक की कहानी नेताजी का चश्मा ऐसी ही लोगों के योगदान को कैप्टन के माध्यम से रेखांकित करता है।

 

२. पानवाले की बात वर्तमान स्थिति को बहुत अच्छी तरह उभारती है। आज लोगों में देश के प्रति प्रेम भावना को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। मूर्तिकार मूर्ति में किसी कारणवश चश्मा लगाना भूल गया था। परन्तु आज लोग सब जानते बुझते हुए अपने देश के देशभक्तों के बलिदानों से मुँह फेर रहे हैं। उन्होंने देश के लिए इसलिए बलिदान नहीं दिया था कि आने वाली पीढ़ी स्वार्थों के वशीभूत होकर देश से ही किनारा काट ले। बल्कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया था ताकि देश की नई युवा पीढ़ी आज़ाद भारत में जन्म लेकर अपने देश का गौरव समस्त ब्रह्मांड में फैला देगी। परन्तु उनका सपना धूमिल हो रहा है। लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता, गौरवमय इतिहास और वीरबलिदानियों को भूल चूक हैं। उनके लिए उनसे बढ़कर कोई नहीं है।

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