हमारे ग्रह पृथ्वी को सबसे बड़ा खतरा हमारी इस मानसिकता से है की कोई और इसे बचा लेगा पर निबंध 1000 शब्द में ..

मनुष्य ने पृथ्वी को इस हालात में पहुँचा दिया है कि वह अपना मूल स्वरूप खो रही है। हमने उसे विभिन्न कारणों से विनाश की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धी की पूर्ति पर लगा हुआ है। सबका यही कहना है कि इस ग्रह को हमने नष्ट नहीं किया है। आज प्रदूषण के तीन प्रकार ने पृथ्वी को जहरीला बना दिया है। मनुष्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए वातावरण का शुद्ध होना परम आवश्यक होता है। जब से व्यक्ति ने प्रकृति पर विजय पाने का अभियान शुरु किया है , तभी से मानव प्रकृति के प्राकृतिक सुखों से हाथ धो रहा है। मानव ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है , जिससे अस्वास्थ्यकारी परिस्थितियाँ जन्म ले रही हैं। पर्यावरण में निहित एक या अधिक तत्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ने लगती हैं , तो परिवर्तन होना आरंभ हो जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। यद्यपि प्रदूषण के विभिन्न रुप हो सकते हैं , तथापि इनमें वायु - प्रदूषण , जल - प्रदूषण , भूमि प्रदूषण तथा ध्वनि - प्रदूषण मुख्य हैं।
 
' वायु - प्रदूषण ' का सबसे बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती हुई संख्या है। वाहनों से उत्सर्जित हानिकारक गैसें वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड , कार्बन डाईऑक्साइड , नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और मीथेन आदि की मात्रा बड़ा रही हैं। लकड़ी , कोयला , खनिज तेल , कार्बनिक पदार्थों के ज्वलन के कारण भी वायुमंडल दूषित होता है। औद्योगिक संस्थानों से उत्सर्जित सल्फर डाई - ऑक्साइड और हाईड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें प्राणियों तथा अन्य पदार्थों को काफी हानि पहुँचाती हैं। इन गैसों से प्रदूषित वायु में साँस लेने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब होता ही है , साथ ही लोगों का जीवन - स्तर भी प्रभावित होता है।

 
' जल प्रदूषण ' का सबसे बड़ा कारण साफ जल में कारखानों तथा अन्य तरीकों से अपशिष्ट पदार्थों को मिलाने से होता है। जब औद्योगिक अनुपयोगी वस्तुएँ जल में मिला दी जाती हैं , तो वह जल पीने योग्य नहीं रहता है। मानव द्वारा उपयोग में लाया गया जल अपशिष्ट पदार्थों ; जैसे - मल - मूत्र , साबुन आदि गंदगी से युक्त होता है। इस दूषित जल को नालों के द्वारा नदियों में बहा दिया जाता है। ऐसे अनेकों नाले नदियों में भारी मात्रा में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहे हैं। ऐसा जल पीने योग्य नहीं रहता और इसे यदि पी लिया जाए , तो स्वास्थ्य में विपरीत असर पड़ता है।
 
मनुष्य के विकास के साथ ही उसकी आबादी भी निरंतर बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी की खाद्य संबंधी आपूर्ति के लिए फसल की पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। उसके लिए मिट्टी की उर्वकता शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। परिणामस्वरूप मिट्टी में रासायनिक खाद डाली जाती है , इसे ही ' भूमि प्रदूषण ' कहते हैं। इस खाद ने भूमि की उर्वरकता को तो बढ़ाया परन्तु इससे भूमि में विषैले पदार्थों का समावेश होने लगा है। ये विषैले पदार्थ फल और सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहे हैं। मनुष्य ने जबसे वनों को काटना प्रारंभ किया है , तब से मृदा का कटाव भी हो रहा है।
 
' ध्वनि प्रदूषण ' बड़े - बड़े नगरों में गंभीर समस्या बनकर सामने आ रहा है। अनेक प्रकार के वाहन , लाउडस्पीकर और औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे लोगों में बधिरता , सरदर्द आदि बीमारियाँ पाई जाती हैं।

हम यह सोचते हैं कि हमने पृथ्वी को विनाश की कगार पर खड़ा नहीं किया है, तो हम सिरदर्दी क्यों लें। अगर हम अपने ग्रह को नहीं बचाएँगे, तो कौन इसे बचाएगा। कोई बाहरी दुनिया से इस ग्रह को बचाने के लिए आने वाला नहीं है। इस ग्रह को यदि नुकसान पहुँचा हैं, तो इसमें सिर्फ और सिर्फ मनुष्य जाति का हाथ है। किसी एक मनुष्य का इसमें हाथ नहीं है। जाने-अनजाने हमने इस पृथ्वी को विनाश की कगार पर ला खड़ा किया है। इसे बचाने के लिए हमें ही प्रयास करना पड़ेगा। जिस प्रकार अपने घर पर लगी आग को बुझाने के लिए मनुष्य दूसरों का इंतज़ार नहीं करता, वैसे ही इसे बचाने के लिए हमें प्रयास करना होगा। यदि हम दूसरों पर निर्भर रहेंगे, तो हम अपने इस ग्रह को और स्वयं के अस्तित्व को समाप्त कर देंगे। 

यह प्रयास ऐसा भी नहीं है कि एक या चार महीने किए जाने पर सही हो सकेगा। हमें इसके लिए वर्षों देने पड़ेगें, तब जाकर हम इस ग्रह को बचा सकेंगे। हमारे पास कोई जादु की छड़ी या ऐलीयन की शक्ति नहीं है, तो इसे फिर से पुरानी वाली स्थिति में पहुँचा सके। आवश्यकता है हम सबके द्वारा प्रयास की।

  • 1
hhghghgjjhfgfdds
  • -2
Sonali... Plz acpt my rqst...
  • 0
What are you looking for?