Aadrsho ki baate karna to bahut aasan hai par unpar chalna bahut mushkil ..kya aap is baat se sahmat hai ? Tark sahet batae .. ( i want a seperate ans ..it is mixed with the ncert ans )

आदर्श तथा सिद्धांत वे नियम हैं, जो हमें दूसरों से भिन्न बनाते हैं और हमारे चरित्र को दृढ़ बनाते हैं। सिद्धांत हमारे द्वारा बनाए जाते हैं, जैसे मैं चोरी नहीं करूँगा, में झूठ नहीं बोलूगाँ, में किसी का बुरा नहीं सोचूँगा, मैं बड़ों की बात नहीं टालूँगा। परन्तु जब वही सिद्धांत लोगों द्वारा स्वीकार्य करके पूजने योग्य हो जाते हैं, तो वे आदर्श का रूप धारण कर लेते हैं। अतः यह एक होते हुए भी अलग हैं और अलग होते हुए भी एक हैं। क्योंकि सिद्धांत नए बनाए जाते हैं परन्तु आदर्श का रूप धारण करने के लिए उन्हें कुछ समय लगता है। भगवान राम ने जो-जो किया वे आज हमारे लिए आदर्श हैं। हम स्वयं के लिए कुछ नए सिद्धांत बनाते हैं जैसे आठ बजे तक घर पर आ जाऊँगा, अपने कार्य के समय में ज्यादा फोन पर बात नहीं करूँगा इत्यादि परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि हर सिद्धांत आदर्श बन जाएँ।
मनुष्य इन आदर्शों की तारीफ करता है, उन पर चलने का प्रयास करता है लेकिन चल नहीं पाता। कारण परिस्थितियाँ कदम-कदम पर उसकी परीक्षा लेती है। बहुत कम लोग होते हैं, जो आदर्शों पर चल पाते हैं। आदर्शों पर चलना कोई आसान बात नहीं है। आदर्श की डगर ऐसी है, जैसे कांटों की डगर। कांटों की डगर में पग संभल-संभल कर रखना पड़ता है। इसके दो उदाहरण है हमारे सामने आते हैं। वे हैं राम और महात्मा गांधी। दोनों ने आदर्शों पर जीवन जीया और अनेक प्रकार के कष्ट झेले लेकिन वह डगमगाए नहीं। आदर्श युक्त जीवन प्रेरणा स्रोत होता है लेकिन यह स्वयं को कितनी प्रेरणा देता है यह विचारणीय है। अतः जब लोगों को इसमें चलने की बारी आती है, तो लोग हार मान जाते हैं।

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ok wait i will give tommorow
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