Anth mein kavi kya anunaya karta hein?
मित्र!
आपका उत्तर इस प्रकार है-
अंत में कवि कहते हैं कि भगवान के नाम की माला जपने और माथे पर तिलक लगाने से कुछ नहीं होता। यह तो आडम्बर है। मन बिना बात के इधर से उधर डोलता रहता है। मन चंचल होता है। व्यर्थ में इधर-उधर भटकता है। सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करो, इससे प्रभु प्रसन्न होंगे तभी तुम्हारे सारे काम बनेंगे। कवि कहते हैं कि सच्चे और निस्वार्थ मन से भगवान की आराधना करो ।
आपका उत्तर इस प्रकार है-
अंत में कवि कहते हैं कि भगवान के नाम की माला जपने और माथे पर तिलक लगाने से कुछ नहीं होता। यह तो आडम्बर है। मन बिना बात के इधर से उधर डोलता रहता है। मन चंचल होता है। व्यर्थ में इधर-उधर भटकता है। सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करो, इससे प्रभु प्रसन्न होंगे तभी तुम्हारे सारे काम बनेंगे। कवि कहते हैं कि सच्चे और निस्वार्थ मन से भगवान की आराधना करो ।