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उत्तर - 

शिक्षा एक विशाल महासागर के समान है, जिसकी अथाह गहराई में गोते लगाने वाला व्यक्ति विद्वान कहलाता है। शिक्षा मनुष्य के दिमाग के सभी बंद दरवाजों को खोल देती है। शिक्षा मनुष्य को एक नई विचारधारा और एक नई सोच विकसित करने में सहायता करती है। शिक्षा के मार्ग में चलकर ही मनुष्य पूरे संसार के दर्शन कर सकता है। मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जीविका के बेहतर साधन भी शिक्षा के द्वारा ही मिल पाते हैं। शिक्षा मनुष्य को आत्मनिर्भर और स्वाबलंबी बनाती है। शिक्षा समाज को बदलने में भी अग्रणीय भूमिका निभाती है। एक मनुष्य सभ्य भी शिक्षा के कारण ही कहलाता है। भारत में प्राचीन समय से ही शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया है। शिक्षा की परिधि किताबी ज्ञान से भी बहुत आगे है। शिक्षा के क्षेत्र में किताबों के अतिरिक्त अनुभव, प्रशिक्षण, कार्य, अभ्यास आदि बातें आती हैं। जिन कारणों से हम कुछ सीखते हैं, वह शिक्षा के अधिकार क्षेत्र में आता है। भारत में आज़ादी से लेकर अब तक शिक्षा का स्तर इतना नहीं बढ़ा है, जितना की होना चाहिए था। भारत एक विशाल जन आबादी वाला देश है। यहाँ पर शिक्षा का स्तर ५० सो ६० प्रतिशत तक ही है, जो कि उचित नहीं है। एक शिक्षित समाज देश के विकास में बहुत बड़ा योगदान देता है। यदि समाज ही शिक्षित नहीं है, तो देश के विकास की दर में भी बढ़ोतरी संभव नहीं है। भारत में शिक्षा के विस्तार पर बड़ी गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। हमें चाहिए कि एक जुट होकर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाएँ। निरक्षता एक बड़ा अभिशाप है, जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के विकास के मार्ग को अवरूद्ध करता है। निरक्षर व्यक्ति अपने साथ-साथ अपने परिवार और देश का भविष्य संभाल नहीं पाता है इसलिए शिक्षा का महत्व हमें साफ लक्षित होता है।

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