athithi kai ghar aanai kai vipaksh mai article 150 words

आज के समय में अतिथि बिना बुलाए घर में आ जाते हैं। पहले का समय था जब अतिथि देवता के समान होता था। परन्तु आज वह एक बोझ के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। वह जब भी आता है आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इतनी मंहगाई में जहाँ अपने खर्चा नहीं चलता है अतिथि का खर्चा चलाना और भी कठिन हो जाता है। यदि वह घर आया है, तो उसके लिए अच्छा खाना बनाना है, उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखना है, उसे घुमाने ले जाना है, जब वह जाए तब उसे कुछ उपहार भी देना है। ऐसे में मध्यम वर्ग तो लूट जाता है। ऐसे में भी अतिथि के मुख पर संतोष का भाव दिखाई नहीं देता है।  ऐसे में अतिथि को देवता का सम्मान देना संभव नहीं होता है। देवता वह होता है, तो आर्शीवाद दे। पाने की उम्मीद न रखे और बोझ न बढ़ाए। ऐसे देवता को कौन पूछे जो मदद के स्थान पर स्वयं लद जाए।

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