बिहारी जी के दोहों का अर्थ इस प्रकार हैं-
1. बिहारी जी कहते हैं कि पीले वस्त्र पहने हुए श्रीकृष्ण इस प्रकार लग रहे हैं मानो प्रातःकाल में प्रभात नीलमणि पर्वत पर सूरज की पीली धूप पड़ रही हो।
२. बिहारी जी के अनुसार गर्मी की ऋतु में बड़ी भंयकर गर्मी पड़ रही है। इस गर्मी के भंयकर ताप ने समस्त संसार को तपोवन के समान बना दिया है। जिसके प्रभाव से शत्रु-भाव रखने वाले पशु-पक्षी जैसे साँप-मोर, हिरण और बाघ एक साथ रह रहे हैं।
3.बिहारी जी के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण की मुरली छुपा दी है। श्रीकृष्ण द्वारा मुरली माँगे जाने पर वह झुठी कसम खाकर कहती हैं कि मुरली उनके पास नहीं है परन्तु आपस में भौंह द्वारा वह मुस्कुरा भी रही हैं। वे कृष्ण को परेशान करना चाहती हैं। बहुत कहने पर वह मुरली देने को तैयार हो जाती हैं परन्तु फिर मुकर जाती हैं।
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