Chap.1 in sparsh phadh 3vyakhya

मित्र!
आपके प्रश्न के लिए हम अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं।

साखी के तीसरे पद में कबीर दास जी कहते हैं जब मेरे अंदर `मैं` था, तब तक मेरे अंदर `अहंकार` विराजमान था। उस समय मेरे मन में  ईश्वर नहीं थे केवल अहंकार था। अब मैं ईश्वर को अपने अंदर पाता हूं  क्योंकि मेरे अंदर `मैं` नहीं है। कबीर दास कहते हैं कि ईश्वर हमें तभी प्राप्त होते हैं जब हम अपने अंदर के `मैं` को दूर कर देते हैं। कबीर दास जी कहते हैं कितना भी घोर अंधकार क्यों ना हो, वह दूर हो जाता है जब दीपक जलता है। दीपक के प्रकाश से अंधकार मिट जाता है। यहां पर अहंकार और अंधकार को समान रखा गया है। ईश्वर वह दीपक रूपी प्रकाश है जिनके होने से अहंकार रुपी अंधकार मिट जाता है।

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i dont know
 
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kya mtlb write your question properly please
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I need vyakhya of 3rd phadh chap.1 saakhi
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