Could you please answer the following question from the poem "manushyta" ? Thanks !
उत्तर–
कवि मैथिली शरण गुप्त मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने के लिए कहते हैं। उनके अनुसार आज का मनुष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु लोकहित जैसी भावना को भूलता जा रहा है। जो मनुष्य अपने लिए जीता है, वह पृथ्वी में पशु के समान है। क्योंकि पशु के जीवन का उद्देश्य खाना और सोना होता है। भगवान ने मनुष्य को सामर्थ्य वान बनाया है। मनुष्य दूसरों की सेवा करने के स्थान पर पूरा जीवन स्वयं का भरण-पोषण करने में व्यर्थ करता है, तो वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं है। कवि कर्ण, दधीचि ऋषि, रंतिदेव, राजा उशीनर आदि महानुभूतियों का उदाहरण देकर मनुष्य को लोकहित के लिए प्रेरित करते हैं।
कवि मैथिली शरण गुप्त मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने के लिए कहते हैं। उनके अनुसार आज का मनुष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु लोकहित जैसी भावना को भूलता जा रहा है। जो मनुष्य अपने लिए जीता है, वह पृथ्वी में पशु के समान है। क्योंकि पशु के जीवन का उद्देश्य खाना और सोना होता है। भगवान ने मनुष्य को सामर्थ्य वान बनाया है। मनुष्य दूसरों की सेवा करने के स्थान पर पूरा जीवन स्वयं का भरण-पोषण करने में व्यर्थ करता है, तो वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं है। कवि कर्ण, दधीचि ऋषि, रंतिदेव, राजा उशीनर आदि महानुभूतियों का उदाहरण देकर मनुष्य को लोकहित के लिए प्रेरित करते हैं।