Dear experts would you plz provide me with a 'saprasang vyakhya' of paragraph 1 of chapter surdaas in kshritij book plz..

पद
(1)
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तैल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोर्यो, दृष्टि न रूप परागी।
सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।​

मित्र!
हमारी वेबसाइट में देखिए हमने इस पाठ के सभी पदों की प्रसंग सहित व्याख्या दी हुई है। आप वहाँ से इन्हें देख सकते हैं।

  • -1
What are you looking for?