Dharm aur Imaan kaisa hona chahiye aur kyu??Please on 4 jan 2012 is my exam and i am ..........jst...........want this answer!!!!!

नमस्कार मित्र,

हम जिस पूजा पद्धति या संस्कारों का निर्वाह करते हैं, आज उसे धर्म कहा जाता है। यदि प्रश्न उठता है कि धर्म क्या है? तो धर्म पूजा पद्धित और संस्कारों से सर्वथा भिन्न है। धर्म के विषय में मनुष्य की सोच मात्र हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई नामों पर आकर रूक जाती है। लेकिन यदि सच्चाई पर गौर किया जाए, तो ये धर्म नहीं है। ये तो नाम हैं, जो हमें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए हमारा मार्गदर्शन करते हैं। जब हम किसी मुसीबत में फंसे व्यक्ति की सहायता करते हैं, किसी के कष्ट को कम करते हैं, किसी के जीवन को नई दिशा देते हैं, किसी के दर्द का निवारण करते हैं, सत्य का निर्वाह करते हैं, सत्य की रक्षा करते हैं, देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करते हैं, किसी व्यक्ति के प्राणों की रक्षा के लिए जो बलिदान या कार्य करते हैं, ये सभी कार्य धर्म कहलाता है। धर्म मात्र इन कार्यों तक सीमित नहीं है हमारे द्वारा किया गया हर वह अच्छा कार्य धर्म कहलाता है, जो पूरी मानवता जाति और पृथ्वी के अन्य जीवों की भलाई के लिए किया गया हो। अब प्रश्न उठता है धर्म कैसा होना चाहिए? इसका जवाब यह है, जो धर्म दूसरों का आदर करने के लिए प्रेरित करे, दूसरों की सहायता के लिए प्रेरित करे, सबको समान रूप से बराबरी का अधिकार दे, मनुष्य में मनुष्यता के गुणों का विकास करे, उसे सच्चाई के मार्ग में चलने के लिए प्रेरित करे। ऐसा धर्म होना चाहिए। वहाँ पूजा पद्धति के स्थान पर मनुष्य और इस पृथ्वी के हर प्राणी को महत्व मिलना चाहिए। जिस ईश्वर को हमने देखा नहीं है, उसे प्रसन्न करने के स्थान पर ऐसे मनुष्य की सहायता करना अधिक महत्वपूर्ण है, जिसे आपकी सहायता की अधिक आवश्यकता है। यही धर्म आज के समाज में बहुत आवश्यक है। 

सच को जानने और मानने का नाम ईमान है। ईमान की स्थिति भी धर्म के समान है। ऐसा ईमान जो सच को झूठला दे और गलत को सही माने तो वह व्यर्थ है। सच-सच होता है। उसे बदला नहीं जा सकता। परन्तु मात्र सच तक ईमान की परिधि समाप्त नहीं होती। अपितु वह तो अनंत है। जो व्यक्ति दूसरों की वस्तु में मोह नहीं रखता। सदा सच बोलता है। दूसरों के विश्वास को नहीं तोड़ता वहीं सच्चे ईमान का अधिकारी होता है। 

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