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मित्र !

आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है ।-

खाँ साहब शहनाई बजा रहे थे। ऐसा लगता था मानो वह ईश्वर की आराधना कर रहे हो। आगे लेखक कहता है कि शहनाई अब वह कुछ लंबा वाद्ययंत्र नहीं थी। अब वह संगीत की धुन नहीं रही थी बल्कि वह अब धुनें की राजा थी।

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