Explanation of gorge pancham ki naak
प्रिय छात्र आपका उत्तर इस प्रकार है।
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ एक व्यंग्यात्मक रचना है। इस रचना के माध्यम से लेखक कमलेश्वर ने आज़ादी प्राप्त कर लेने के बाद भी गुलामी से युक्त भारतीयों की मानसिकता और विदेशी आकर्षण में सरोबार स्वभाव पर करारा प्रहार किया है। यह कहानी इग्लैंड की महारानी के भारत आने की घटना से आरंभ होती है। दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक गायब हो जाती है। सरकार नाक गायब होने से घबरा जाती है। आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी उनके अंदर गुलामी के बीज पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं। वे महारानी को किसी भी कीमत में प्रसन्न करना चाहते हैं। लेखक इसी नाक का सहारा लेकर कहानी को आरंभ करता है। जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर पूरी दिल्ली में हंगामा मच जाता है। पूरा सरकारी विभाग नाक को किसी भी कीमत में वापिस लगाने की जोड़-तोड़ आरंभ कर देता है। इसकी ज़िम्मेदारी एक मूर्तिकार को दी जाती है। मूर्तिकार भरसक कोशिश करता है परंतु उसे नाक के लिए उचित पत्थर नहीं मिलता। वह अपने देश की महाविभूतियों की मूर्तियों से नाक निकाल कर जॉर्ज पंचम की नाक पर लगाना चाहता है परंतु उसे वहाँ भी कुछ नहीं मिलता। आखिर नाक लग जाती है परंतु कैसे यह कोई नहीं जानता। लेखक ने इस कहानी से जहाँ एक घटना को उकेरा है, वहीं उन्होंने इस कहानी के द्वारा सरकारी विभागों में होने वाली लापरवाहियों का भी भंडा फोड़ा है। मीडिया की भूमिका पर भी उन्होंने प्रश्न किया है। उन्होंने इस कहानी में हर उस कमज़ोर कड़ी को दर्शाने का एक सफल प्रयास किया है, जो देश में व्याप्त है। कहीं न कहीं ये कड़ियाँ भारत को आंतरिक तौर पर कमज़ोर कर रही हैं।
धन्यवाद।
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ एक व्यंग्यात्मक रचना है। इस रचना के माध्यम से लेखक कमलेश्वर ने आज़ादी प्राप्त कर लेने के बाद भी गुलामी से युक्त भारतीयों की मानसिकता और विदेशी आकर्षण में सरोबार स्वभाव पर करारा प्रहार किया है। यह कहानी इग्लैंड की महारानी के भारत आने की घटना से आरंभ होती है। दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक गायब हो जाती है। सरकार नाक गायब होने से घबरा जाती है। आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी उनके अंदर गुलामी के बीज पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं। वे महारानी को किसी भी कीमत में प्रसन्न करना चाहते हैं। लेखक इसी नाक का सहारा लेकर कहानी को आरंभ करता है। जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर पूरी दिल्ली में हंगामा मच जाता है। पूरा सरकारी विभाग नाक को किसी भी कीमत में वापिस लगाने की जोड़-तोड़ आरंभ कर देता है। इसकी ज़िम्मेदारी एक मूर्तिकार को दी जाती है। मूर्तिकार भरसक कोशिश करता है परंतु उसे नाक के लिए उचित पत्थर नहीं मिलता। वह अपने देश की महाविभूतियों की मूर्तियों से नाक निकाल कर जॉर्ज पंचम की नाक पर लगाना चाहता है परंतु उसे वहाँ भी कुछ नहीं मिलता। आखिर नाक लग जाती है परंतु कैसे यह कोई नहीं जानता। लेखक ने इस कहानी से जहाँ एक घटना को उकेरा है, वहीं उन्होंने इस कहानी के द्वारा सरकारी विभागों में होने वाली लापरवाहियों का भी भंडा फोड़ा है। मीडिया की भूमिका पर भी उन्होंने प्रश्न किया है। उन्होंने इस कहानी में हर उस कमज़ोर कड़ी को दर्शाने का एक सफल प्रयास किया है, जो देश में व्याप्त है। कहीं न कहीं ये कड़ियाँ भारत को आंतरिक तौर पर कमज़ोर कर रही हैं।
धन्यवाद।