महंगाई की बीमारी पर कविता ( २ से ३ पेज)

मित्र हमारे पास कविता संग्रह उपलब्ध नहीं है। अतः हम आपको यह नहीं दे सकते हैं। अपने विद्यालय के पुस्तकालय से आप सहायता ले सकते हैं।

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भ्रष्टाचार को भंग कर दो,  कुछ कम कर दो महंगाई को।।   घपले पर घपला कब तक होगा, कब तक भूखे मरेंगे लोग।  कब तक आबरू लुटती रहेगी।  कब तक रहेगा कुरिया में शोक।।   दिन दुपहरे लुटे खजाना।  बंद करो ढिठाई को।   कब तक रारी रार करेंगे,  कब जाएगी अन्याय की डोर। कब आएगा न्याय का मौसम,  कब नाचेंगे आंगन में मोर।।   ऐसा नियम बना दो दाता,  छुए न लोग बुराई को। भ्रष्टाचार को भंग कर दो, कुछ कम कर दो महंगाई को।।
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भ्रष्टाचार को भंग कर दो,  कुछ कम कर दो महंगाई को।।   घपले पर घपला कब तक होगा, कब तक भूखे मरेंगे लोग।  कब तक आबरू लुटती रहेगी।  कब तक रहेगा कुरिया में शोक।।   दिन दुपहरे लुटे खजाना।  बंद करो ढिठाई को।   कब तक रारी रार करेंगे,  कब जाएगी अन्याय की डोर। कब आएगा न्याय का मौसम,  कब नाचेंगे आंगन में मोर।।   ऐसा नियम बना दो दाता,  छुए न लोग बुराई को। भ्रष्टाचार को भंग कर दो, कुछ कम कर दो महंगाई को।।
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