इस दोहे का अर्थ समझाए

प्रिय मित्र,

कबीरदास जी कहते हैं कि एक तिनके में इतनी शक्ति नहीं होती कि वह आकाश की अनंत ऊंचाइयों को पार कर उस पार जा सके पर उस मालिक की मेहर हो और हवा का तेज भंवर आ जाये तो वह तिनका यह ऊंचाइयां भी सर कर जाता है, ऐसे ही इंसान की कोई हैसियत नहीं कि वह खुदा से मिल सके पर यदि उसे खुदा से प्रेम हो जाए, और उसके प्रेम में इतनी कशिश हो की वह सारी हदों को पार कर जाए तो इसी प्रेम के वश हो खुदा उससे खुद मिलने आते हैं, और हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जाने के लिए । जो उनका होगा वो साथ जायेगा और जो उनका नहीं वह यहीं रह जाता है।

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