i am not able to understand parvat pravesh mein pavs poem with help of summary can u plzz help me...

1. पावस ऋतु ………………………………………………..दर्पण-सा फैला है विशाल!

व्याख्या - पंत जी कहते हैं कि पहाड़ों पर वर्षा ऋतु की छवि बड़ी अनुपम होती है। इस ऋतु के कारण प्रकृति में पल-पल बदलाव आ रहा है जिसके कारण रंग-बिरंगे दृश्य दिखाई दे रहे हैं। पर्वतों में वर्षा ऋतु के कारण फूलों की बहार आई हुई है। पर्वत की तलहटी में एक बड़ा-सा तालाब है जो दर्पण के समान प्रतीत हो रहा है। फूलों से युक्त पर्वत ऐसे लग रहा है मानों कोई अपनी विशाल फूल रूपी बड़ी-बड़ी आँखों से तालाब रूपी दर्पण में अपनी छवि निहार रहा हो।

2. गिरि का गौरव ……………………………………………………….अपार पारद के पर!

व्याख्या -पंत जी पर्वतों में झरनों की शोभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पहाड़ों में गिरते हुए झरने ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानों पहाड़ों से तीव्र वेग से झाग बनाती हुई मोतियों की लड़ियों-सी सुन्दर पानी की धारा झर-झर करती हुई बह रही है। पर्वतों पर उगे हुए ऊँचे-ऊँचे पेड़ ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो आकाश को छूने की इच्छा करते हुए शांत आकाश की ओर कुछ चिंतित परन्तु दृढ़ भाव से निहार रहे हैं। आकाश में बादल छाने के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो पर्वत गायब हो गया है। ऐसा लगता है मानों पर्वत पक्षी की भांति अपने सफ़ेद पंख फड़फड़ता हुआ दूर कहीं उड़ गया हो।

3. रव-शेष रह …………………………………………………………………… इंद्रजाल।

व्याख्या -पंत जी कहते हैं कि ऐसा लगता है बादल पक्षी की भांति पंख लगाकर उड़ गया हो और सिर्फ झरनों की आवाज ही शेष सुनाई दे रही है। दूर क्षितिज पर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों अंबर पृथ्वी पर गिर पड़ा हो अर्थात्‌ धरती व अंबर मिलते हुए दिखाई दे रहे हैं। वातावरण में चारों तरफ़ धुँआ छाया हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है मानों तालाब में आग लगी हो और जलने के डर से सारे पेड़ धरती के भीतर धँस गए हैं। इस तरह बादल रूपी यान पर बैठकर इंद्र देवता अपना इंद्रजाल फैलाकर प्रकृति की जादूगरी दिखा रहे हैं।

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