I want an essay on aa bail mujhe maar.

मित्र!

हमारे एक अन्य मित्र ने यहाँ पर इस प्रश्न का उत्तर दिया है। हम भी अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी मदद लेकर अपना निबंध पूरा कर सकते हैं।

आ बैल मुझे मार 

आ बैल मुझे मार – इसका मतलब है जान बुझकर मुसीबत मोल लेना। ऐसे भी लोग हैं जो सरलता और सहजता से किए जाने वाले काम को जटिल बना देते हैं और मुसीबत मोल लेते हैं। ऐसी कष्टकारी स्थिति में पड़ने से अच्छा है कि समझ-बूझ कर कार्य किया जाए। जो लोग आ बैल मुझे मार वाली स्थिति से बच कर चलते हैं वही समझदार कहलाते हैं। ये ठीक वैसे ही है जैसे कोई कीचड़ वाले तालाब में साफ़ कपड़े पहन कर उतरता है। 

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"आ बैल मुझे मार " एक ऐसा मुहावरा है जिसे सुनकर मेरी दादी की एक सुनाई गई कहानी की बहुत याद आती है । यह मेरे पिता के चचेरे भाई के बारे में है । मेरी दादी कहती है कि जब वह छोटे थे तब वह बहुत शरारती थे । उन्हें संभालना नामुमकिन के बराबर था । सब लोग कहते थे कि उन्हें घर बुलाना मुसीबत मोल लेना है । वह मेरे पिता से चार साल बड़े हैं और उनका नाम शरत है।ये कहानियाँ चालीस साल पुरानी हैं । एक बार शरत गर्मियों की छुट्टियों में मेरी दादी के घर एक महीने के लिए आए । इस दौरान उन्होंने इतनी बदमाशियाँ कीं कि मेरी दादी ने सोचा कि उन्हें बुलाना "आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है । वह घर की दूसरी मंज़िल की खिड़की पर चढ़ कर खड़े हो जाते थे । खिड़की पर सलाखें नहीं थीं और गिरना आसान था । जब दादी को यह पता चला तो शरत को खूब डाँट कर उसे वहाँ चढ़ने से मना कर दिया । उसी महीने एक और घटना घटी । दादी सारे बच्चों को चिड़ियाघर लेकर गई थी । जब वे बंदर के पिंजड़े के पास गए तब शरत ने अपना हाथ बन्दर के पिंजड़े में डाल दिया । शरत बंदर को चिढ़ा रहा था । इससे बंदर भड़क गया । बंदर ने गुस्से में शरत को ज़ोरदार थप्पड़ मारा । आस-पास खड़े बच्चे रोने लगे । दादी घबराकर सोचने लगी कि अब शरत को क्या हो गया ? चिड़ियाघर के अफसर आए । शरत और दादी को डाँट लगाई और वहाँ से निकल जाने को कह । दादी और बच्चों को शर्मिन्दगी महसूस हुआ । जब वे घर लौटे तब शरत को दादी से और डाँट पड़ी । इसी महीने एक और हादसा हुआ । मेरी दादी के घर के बगीचे में एक बड़ा-सा आम का पेड़ था । एक दिन शरत उसी पेड़ पर चढ़कर बैठ गया । वह कई घण्टे उधर बैठा रहा । घर में सब लोग उसे ढूँढने की कोशिश कर रहे थे । दादी, दादा और अन्य लोग परेशान हो गए । पड़ोसियों के कहने पर पुलिस ने रपट लिखाई । तीन घण्टे के तमाशे के बाद शरत ने पेड़ के ऊपर से आवाज़ लगाई । सब लोग हक्काबक्का रह गए । दादी और दादा क्रोध से पेड़ की तरफ देखने लगे । पुलिस भी चकित हो गई । अगली मुसीबत यह थी कि शरत नीचे नहीं आ पा रहा था । हर दिशा में गिरने की संभावना थी । अंत में घर के लोगों को "फायर ब्रिगेड" को बुलाना पड़ा । उनकी लंबी सीढ़ी का इस्तेमाल करके कुछ पुलिस वालों ने शरत को किसी तरह नीचे उतारा । जब वह नीचे आया, तब सबके सामने शरत को दादी और दादा ने जोर से डाँटा । किसी तरह एक महीना गुज़रा । कुछ न कुछ मुसीबतें आती ही रहीं । दादी शरत को बहुत प्यार करती थीं परन्तु जब वह लौट रहा था तब दादी ने चैन की साँस ली । उन्होंने सोचा कि अब मुझे उसकी शरारतें नहीं झेलनी पड़ेंगी । जब शरत लौट गया । दादी सोच रही थीं कि उसे घर में बुलाना " आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है ।  
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