In ANUCHED LEKHAN HOW MANY PARAGRAPHS WE NEED I AM CONFUSED ALSO DO WE NEED A SUITABLE TITLE OF A ANUCHED LEKHAN LIKE IN THE GIVEN PICTURE WE HAVE TI WRITE ANUCHED LEKHAN IN 80 - 100 WORDS SO WHAT SHOULD BE THE SUITABLE TITLE FOR THAT ALSO DO WE NEED TO WRITE IN PARAGRAPHS. HOW MANY PARAGRAPHS WE NEED IN ANUCHED LEKHAN ????ALSO AFTER THE TITLE OF THE TOPIC YOU WILL GIVE SHOULD WE LEAVE ONE LINE SO THAT WE CAN START THE ANUCHED ????IS IT COMPULSARY TO LEAVE ONE LINE IN BORAD EXAM AFTER THE SUITABLE TITLE OF THE GIVEN TOPIC ALSO PLZ TELL ME THE TITLE OF THE GIVEN TOPIC IN PICTURE

प्रिय छात्र,

हम आपको अपना पैराग्राफ लिखने के लिए कुछ संकेत और बिंदु दे रहे हैं।

हमारे शहर में प्रतिवर्ष 26 जनवरी के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है । मेला गाँधी मैदान में लगता है जिसे देखने शहर के नागरिकों के अलावा निकटवर्ती गाँवों और कस्बों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं ।मैं भी अपने माता-पिता के साथ संध्या चार बजे मेला देखने गया । वहाँ खचाखच भीड़ थी । मुख्य मार्गों पर तो तिल रखने की जगह भी नहीं थी । लोग धक्का-मुक्की करते आपस में टकराते चल रहे थे । हम लोगों ने भी भीड़ का अनुसरण किया । भीतर तरह-तरह की दुकानें थीं । मिठाई, चाट, छोले, भेलपुरी तथा खाने-पीने की तरह-तरह की दुकानों में भी अच्छी-खासी भीड़ थी । तरह-तरह के आकर्षक खिलौने बेचने वाले भी कम नहीं थे । गुब्बारे वाला बड़े-बड़े रंग-बिरंगे गुब्बारे फुलाकर बच्चों को आकर्षित कर रहा था । कुछ दुकानदार घर-गृहस्थी का सामान बेच रहे थे । मुरली वाला, सीटीवाला, आईसक्रीम वाला और चने वाला अपने – अपने ढंग से ग्राहकों को लुभा रहा था ।

अब पेटपूजा की बारी थी । मेले में कुछ चटपटा न खाया तो क्या किया । इसलिए हम लोग चाट वाले की दुकान पर गए । चाट का रंग तगड़ा था पर स्वाद फीका । फिर हमने रसगुल्ले खाए जिसका जायका अच्छा था । पर मेले से अभी मन न भरा था । हम आगे बढ़ते-बढ़ते प्रदर्शनी के द्वार तक पहुँचे । पंक्ति में खड़े होकर भीतर पहुँचे । वहाँ तरह-तरह के स्टॉल थे ।एक स्टॉल में परिवार नियोजन के महत्त्व को समझाया गया था । दूसरे में आधुनिक वैज्ञानिक कृषि से संबंधित जानकारी की भरमार थी । तीसरे में खान से खनिज पदार्थों को निकालने की विधि मॉडल के रूप में दर्शायी गई थी । चौथे में इक्कीसवीं सदी में भारत की उन्नति का चित्रण था । और आगे सब्जियों की विभिन्न किस्में रखी थीं ।
मेले में धूल, धुआँ, धक्का और शोर चरम सीमा पर था फिर भी लोगों को मजा आ रहा था । हर कोई अपनी धुन में था । सभी खुश दिखाई दे रहे थे । हम मेले का एक और चक्कर लगाकर मेला परिसर से बाहर निकल आए । मेला पीछे छूट गया पर मेले की यादें मेरे मन-मस्तिष्क में अभी तक अंकित हैं….. छब्बीस जनवरी का मेला!

 

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