Inke arth spast kre....
Do it fast!
मित्र ! रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने हमें इस दोहे में जो ज्ञान दिया है, उसे हमें हमेशा याद रखना चाहिए। ये पूरी जिंदगी हमारे काम आएगा। रहीम जी के अनुसार, हर वस्तु या व्यक्ति का अपना महत्व होता है, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा। हमें कभी भी किसी बड़े व्यक्ति या वस्तु के लिए छोटी वस्तु या व्यक्ति की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कवि कहते हैं कि जहाँ सुई का काम होता है, वहां पर तलवार कोई काम नहीं कर पाती, अर्थात तलवार के आकार में बड़े होने पर भी वह काम की साबित नहीं होती, जबकि सुई आकार में अपेक्षाकृत बहुत छोटी होकर भी कारगर साबित होती है। इसीलिए हमें कभी धन-संपत्ति, ऊँच-नीच व आकार के आधार पर किसी चीज़ की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
रहिमन निज संपति बिना, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमसे कह रहे हैं कि जब मुश्किल समय आता है, तो हमारी खुद की सम्पत्ति ही हमारी सहायता करती है। अर्थात हमें खुद की सहायता खुद ही करनी होती है, दूसरा कोई हमें उस विपत्ति से नहीं निकाल सकता। जिस प्रकार पानी के बिना कमल के फूल को सूर्य के जैसा तेजस्वी भी नहीं बचा पाता और वह मुरझा जाता है। उसी प्रकार बिना संपत्ति के मनुष्य का जीवन-निर्वाह हो पाना असंभव है।
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने अपने दोहों में जीवन के लिए जल के महत्व का वर्णन किया है। उनके अनुसार हमेशा पानी को हमेशा बचाकर रखना चाहिए। यह बहुमूल्य होता है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है। बिना पानी के हमें न मोती में चमक मिलेगी और न हम जीवित रह पाएंगे। यहाँ पर मनुष्य के संदर्भ में कवि ने मान-मर्यादा को पानी की तरह बताया है। जिस तरह पानी के बिना मोती की चमक चली जाती है, ठीक उसी तरह, एक मनुष्य की मान-मर्यादा भ्रष्ट हो जाने पर उसकी प्रतिष्ठा रूपी चमक खत्म हो जाती है।