its very difficult to understand this portion please provide vidoes to make it eassier

 

 

मित्र आप लोगों को संधि इसलिए कठिन लगती है क्योंकि आप इनके नियमों को ध्यानपूर्वक नहीं देखते हैं। यदि आप इनके नियमों को समझने लग जाएँगे, तो आपकी यह कठिनाई समाप्त हो जाएगी। इसके लिए आवश्यक है कि आप अपनी व्याकरण की पुस्तक में संधि के पाठ का ध्यानपूर्वक अध्ययन कीजिए। आपको संधि करने की समस्त नियमावली मिल जाएगी। 

 

 

 

 

हम आपको कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझाने का प्रयास करते हैं। वैसे आप जानते ही हैं कि संधि तीन प्रकार की होती है- स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि। स्वर संधि के भी पाँच भेद होते हैं- १. दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि और अयादि संधि। 

दीर्घ संधि में संधि का यह नियम होता है- 

क) आ+आ = आ- जैसे- विद्यालय- विद्या+ आलय 

(विद्यालय दो शब्दों से मिलकर बना है। आप सोचेंगे कि इसके अंदर आ + आ का मेल कहां से दिखाई देता है। तो ध्यान से देखिए विद्या में 'द्य' के पीछे लगा 'आ' का डंडा बड़े आ का सूचक है। उसी तरह आलय के आगे बड़ा 'आ' लगा हुआ है। दोनों बड़े 'आ' मिलकर 'आ' बना देते हैं। इस तरह दीर्घ संधि में दो दीर्घ स्वर मिलकर दीर्घ स्वर का निर्माण करते हैं।) 

एक बाद और ध्यान देने योग्य है कि आपको यह जानना होगा कि कौन से वर्ण ह्स्व कहलाते हैं और कौन से दीर्घ। बच्चे अधिकत्तर इन्हें नहीं समझ पाते हैं और यही कारण है कि वह संधियों की परिभाषाएँ नहीं समझ पाते हैं। उदाहरण के लिए दीर्घ संधि में जब अ, इ, उ ह्स्व या दीर्घ के बाद अ, इ, उ आता है, तो इनके मेल से वह आ, ई और ऊ हो जाता है। 

ख) अ+आ=आ- जैसे-देवालय- देव+आलय 

ग) अ+अ=आ- जैसे- मतानुसार- मत+अनुसार 

घ) आ+अ=आ- शिक्षार्थी- शिक्षा + अर्थी 

इसी तरह अन्य संधि के भी अलग-अलग नियम है। हमने साइट पर दिए हुए हैं आप इन्हें ध्यानपूर्वक देखिए। 

(यह ध्यान रखें कि अ, इ और उ ह्स्व कहलाते हैं तथा आ, ई और ऊ दीर्घ शब्द कहलाते हैं।)

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