Kavi maithilisharan gupt ke anusar kavi kab ahnkari ho jata hai aur kyu

मित्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-
कवि कहता है कि यह सोचकर कभी अहंकार मत करना कि तुम संत हो। अर्थात तुम अच्छे कार्य कर रहे हो, यह सोचकर अहंकार मत करना। अहंकार मनुष्य के अच्छे कार्यों में बाधा के समान होता है। एक अहंकारी मनुष्य कभी परोपकार नहीं कर पाता है। अतः जो करो वह निस्वार्थ भाव से करो।

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