kharbhuje bechne wali ke dukh ko na samajhkar log uspar kya tippani kar rahe the?

बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कह रहे थे। कोई घृणा से थूककर बेहया कह रहा था,कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था,कोई कमीनी,कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता,कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है,परचून वाला कहता,यह धर्म ईमान बिगाड़कर अंधेर मचा रही है,इसका खरबूज़े बेचना सामाजिक अपराध है। इन दिनों कोई भी उसका सामान छूना नहीं चाहता था।

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बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह

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