kripaya mujhey raidas ke pado ka arth bataye.

you are requested to provide me the meaning of the poem.

नमस्कार मित्र!
पहले पद में रैदास जी अपने आराध्य देव का स्मरण करते हैं। वह विभिन्न उपमानों द्वारा उनसे अपनी तुलना करते हैं। वह स्वयं को प्रभु के साथ के बिना अधूरा मानते हैं। उनके अनुसार उनका और उनके प्रभु का रिश्ता ऐसा है जैसे चंदन और पानी का, जिस तरह से चंदन में पानी को डालकर पानी भी सुंगधित हो जाता है उसी प्रकार रैदास भी सुंगधित हो गए हैं। उनके प्रभु बादल के समान है और रैदास जी मोर के समान है, उनके प्रभु चांद हैं तो वह चकोर के समान है। बादल के आने पर मोर प्रसन्नता से नाचने लगता है और चांद के आने पर ही चकोर प्रसन्न रहता है उसी प्रकार अपने प्रभु के दर्शनों से रैदास जी प्रसन्न हो जाते हैं। रैदास जी के अनुसार प्रभु उनके साथ ऐसे ही रचे-बसे हैं, जैसे दीये के संग बाती होती है। प्रभु आप मोती हो और हम धागा होता है और सोने के साथ सुहागा होदा है वैसे ही आर और मैं हैं। प्रभु जी आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपकी दास हूँ, जो आपकी भक्ति में लीन रहता हूँ।
दूसरे पद में रैदास जी अपने आराध्य देव की कृपा, प्रेम और उदारता के लिए उनका धन्यवाद करते हैं। उनके अनुसार ये सब उनके भगवान के द्वारा ही किया जा सकता है। भगवान ने ही उनके जैसे व्यक्ति को राजाओं जैसा सुख दे दिया है। उनके अनुसार भगवान सबको समान रूप से देखते हैं। तभी तो उनके जैसे नीच कुल के व्यक्ति को उन्होंने अपने प्रेम से भर दिया है और अपने चरणों में स्थान दिया है।  
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

  • 38

Thank you very much mam

  • 7
What are you looking for?