Lekhak ke anusar Premchand ke pas poshakein badalne ka gun nahi hai. Iske peeche chhupe vyang ko spasht kijiye.

मित्र इस पंक्ति के माध्यम से कवि उन लोगों पर व्यंग्य कर रहे हैं, जो स्थिति के अनुसार अपना रंग बदल लेते हैं। इस प्रकार के लोग अपने जीवन में दिखावे को प्रमुख मानते हैं। वह बनावटी रूप को ही महत्व देते हैं परंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं है। वह दिखावे में नहीं जीते इसलिए कहा गया है कि प्रेमचंद के पास पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।                                                                             

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