mahadev desai vakalat ke peshe ko kyo nahi apna sake?
Hi!
महादेव जी का मन कभी इस पेशे में लगा ही नहीं, वह पहले भी वकालत के पेशे के साथ साहित्य की ओर ध्यान देते थे। गांधीजी से प्रभावित होकर तो मानो जैसे उन्हें विरक्ति हो गई और उन्होंने गांधीजी व देश की सेवा करने की ठान ली। इसलिए उन्होंने इस पेशे को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
ढ़ेरों शुभकामनाएँ!